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नाटक

नहले पे दहला

डॉ. भारत खुशालानी


तकरीबन तीस वर्ष की एक महिला एक ओर बैठी है. पीछे काली माता की मूर्ती है. मूर्ती पर हार-फूल चढ़े हैं. मूर्ती के नीचे फल-आहार और अन्य प्रसाद बिखरा पड़ा है. अगरबत्ती जल रही है. तकरीबन पचास वर्ष का एक तांत्रिक जैसा दिखने वाला व्यक्ति प्रवेश करता है और महिला के सामने कुछ दूरी पर बैठ जाता है.

तांत्रिक (कुछ देर तक आँखें बंद रखकर चुप्पी साधने के पश्चात) : आपके लिए एक सूर्य-तावीज़ बनाया है. इसको घर जाकर गले में धारण कर लेना.

अपने पास रखा हुआ तावीज़, तांत्रिक उस महिला को दे देता है. तावीज़ एक काले मोटे धागे का बना है, जिसपर सूर्य जैसा दिखने वाला तारा-रुपी सिक्का बंधा है. महिला सूर्य-तावीज़ को हाथों में ले लेती है. सूर्य-तावीज़ के आठ तारे हैं जिनपर 'हीं' लिखा है. सिक्के के बीचोबीच 'देवदत्त' लिखा है. सिक्के की चार दिशाओं में 'सा' लिखा है.

तांत्रिक : इस कागज़ पर मंत्र भी लिख दिया है. इसे रोज़ 108 बार पढना है. मंत्र का उच्चारण इस प्रकार से है.

तांत्रिक मंत्र पढ़कर बताता है.

तांत्रिक (मंत्र पढ़ते हुए) : अन‌ङग‍‍ वल्लभे देवि त्वं च मे प्रीयतामिति, एनं प्रियं महावश्यं कुरु त्वं स्मरवल्लभे.

महिला (धीरे धीरे कागज़ देखकर मंत्र पढ़ते हुए दोहराती है) : अन‌ङग‍‍ वल्लभे देवि त्वं च मे प्रीयतामिति, एनं प्रियं महावश्यं कुरु त्वं स्मरवल्लभे.

तांत्रिक : इसे 108 बार पढना है. आनेवाली शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किसी सौभाग्यशाली स्त्री को प्रेम से बिठाकर भोजन करवाना.

महिला हाथ जोड़कर उठती है. काली माता के पैरों को छूती है. और मंत्र तथा तावीज़ लेकर प्रस्थान करती है. तांत्रिक उसको जाते हुए देखता है, फिर अपनी पत्नी को आवाज़ लगाता है.

तांत्रिक : रेखा ... रेखा ... ज़रा यहाँ आना.

तकरीबन 22 वर्षीय युवती साडी पहने प्रवेश करती है.

रेखा : जी कहिये.

तांत्रिक : मुझे थोडा काम से बाहर जाना है. अगर यशेन्द्र आ जाए तो उसे बिठा कर रखना.

रेखा : जी, ठीक है. लेकिन थोड़ी ही देर में मेरी माँ आने वाली है. उससे मिलकर चले जाते.

तांत्रिक : नहीं, मुझे देर हो रही है. मैं फिर किसी दिन मिल लूँगा.

तांत्रिक चले जाता है. रेखा सोफे पर बैठ जाती है. कुछ ही पलों में रेखा की माँ भीतर आती है. रेखा उससे गले लगकर मिलती है और उसे दीवान पर बिठा देती है.

रेखा : माँ ...

रेखा की आँखों में आँसूं आ जाते हैं. यह देखकर उसकी माँ चिंतित हो जाती है.

माँ : क्या हुआ बेटा ? रोने की क्या बात हो गई ?

रेखा की माँ, रेखा के हाथ पकड़कर बैठ जाती है.

रेखा (नम आँखों से) : शादी को एक साल पूरा हो गया माँ.

माँ : मुझे पता है बेटा.

रेखा : अब और कितने समय तक सहना पड़ेगा ?

माँ : बेटा, वो तो हमारी अच्छी किस्मत थी जो भैरवनाथ के बारे में पता चल गया.

रेखा धीमे से हामी भरती है.

माँ : अगर शांति उस अस्पताल में नर्स नहीं होती जहाँ हार्ट अटैक के बाद भैरवनाथ को लाया गया था, तो भैरवनाथ आज तुम्हारा पति नहीं होता.

रेखा (शांति का नाम सुनकर) : शांति कैसी है ?

माँ : अभी भी उसी अस्पताल में नर्स है. उसको सेवा करना अच्छा लगता है.

रेखा : लेकिन पैसे कितने मिलते हैं ?

माँ : पैसे ज्यादा नहीं हैं. शायद महीने का तीस-पैतींस हज़ार मिलता है उसको.

रेखा : भैरव के पास तो करोड़ों हैं. आज भी एक महिला आई थी. अपने पति के वशीकरण का मंत्र और तावीज़ लेकर गई है भैरव से. भैरव को उससे बीसहज़ार मिले.

माँ : बेटा, इसीलिए तो तेरी शादी उससे कराई है. नहीं तो हमारी क्या औकात थी ? एक फूटी कौड़ी नहीं थी घर में जब तेरी शादी हुई थी पिछले साल. तेरे पिताजी भी गुजर गए. मैं कहाँ कहाँ भटकते बैठती थी तेरा रिश्ता ढूँढने ? पता नहीं कितना कर्जा सर पर छोड़ गए तेरे पिताजी. रोज़ कोई न कोई आ धमकता है.

रेखा माँ से गले लिपट जाती है.

रेखा : तू चिंता मत कर माँ. कुछ न कुछ तो हो जाएगा. भगवान् ने ही शांति के पास भैरव को भेजा था. ऐसा करोडपति कमज़ोर दिलवाला हार्ट का मरीज़ किस्मत से ही मिला है. जल्द ही कुछ हो जाएगा.

माँ : बेटा, गली-मोहल्ले में तेरे कारण भी तो काफी बदनामी हो गई थी. आस-पड़ोस में सबको पता था कि तू देर रात तक कैसे उस लफंगे और आवारा गुंडे के साथ घूमती थी.

रेखा : नित्या के साथ ? वो तो पुरानी बात हो गई माँ.

माँ : बेटा बात तो पुरानी हो गई, लेकिन रह-रहकर आज भी मुझे याद आता है कि कितने झगडे हुए तेरे और मेरे बीच, नित्या के कारण.

रेखा : जब भैरव के साथ तूने मेरी शादी पक्की कराई थी, तो मैंने नित्या को अच्छे से समझाकर उसे अलग कर दिया था.

माँ : मुझे तो तब बहुत ही आश्चर्य हुआ जब शादी के दिन न तो वो आया और न ही कोई बवाल खड़ा किया. पूरे समय ऐसा लग रहा था कि वो कोई बखेड़ा खड़ा करेगा.

रेखा : अब उसकी बात जाने दो माँ. अब तो शादी को एक साल हो गया. मेरी शादी के बाद, उसने भी तुरंत ही किसी और को पकड़ लिया.

माँ : भैरव ने तुझे अपनी तिजोरी की चाबी दे रखी है कि नहीं ?

रेखा : तिजोरी की चाबी ?! रोज सब्जी लाने तक के पैसे उस से लेने पड़ते हैं !

माँ : अरे भगवान् !

रेखा : पता नहीं कहाँ कहाँ पैसा दबा कर रखा है.

माँ : ये कैसे पता चलेगा ?

रेखा : तिजोरी में एक लाल रंग की डायरी है जिसमें सब लिखा हुआ है.

माँ : वैसे भी भैरव के जाने के बाद तो सब कुछ तेरा ही होगा ना ?

रेखा : अगर वो तलाकशुदा होता तो उसकी बीवी को पता रहता कि पैसा और जवाहरात कहाँ दबे पड़े हैं. लेकिन ये तो अच्छा हुआ कि उसकी पहली बीवी अब इस दुनिया में नहीं है.

माँ : बेटा, ये तो किस्मत की बात है. तभी तो तेरा संयोग बना है इसके साथ. अगर वो जिंदा होती, तो आज तू भैरव की बीवी नहीं होती.

रेखा : लेकिन मुझे हर छोटी बात में भैरव से पैसों की भीख मांगनी पड़ती है.

माँ : चिंता मत कर. सब सही हो जाएगा. अच्छा, मैं चलूँ ?

माँ जाने के लिए उठ जाती है.

रेखा : थोडा और बैठ जाती तो दिल हल्का हो जाता.

माँ : आज रामबाबा के यहाँ जाना है. खेत के चारों ओर बाड़ा लगाने के लिए जमीन को मांपना है.

रेखा : कितना काम करती है तू माँ.

माँ : बेटा सब मुझे ही करना पड़ता है. ठीक है मैं चलती हूँ.

माँ चले जाती है. रेखा थोड़ी देर गुमसुम-सी वहीँ बैठे रहती है.

अचानक ही तकरीबन 22-23 वर्ष का एक युवक प्रवेश करता है.

रेखा हडबडाकर उठ जाती है.

युवक ने जीन्स और टी-शर्ट पहन रखी है, और गले में गुंडे-मवालियों की तरह रुमाल बाँध रखा है.

रेखा : नित्या ...

रेखा और नित्या गले लग जाते हैं.

रेखा : अभी अभी माँ गई है. अच्छा हो गया तुम उसके सामने नहीं आए.

रेखा अपना मोबाइल निकालकर फ़ोन करती है.

रेखा (मोबाइल पर) : भैरव, आप कहाँ पर हो ?

एक पल के बाद.

रेखा (मोबाइल पर) : ठीक है,नहीं बस ऐसे ही किया था.

एक पल के बाद.

रेखा (मोबाइल पर) : हाँ, आई थी. अभी-अभी गई है, उसको खेत के काम से जाना था.

एक पल के बाद.

रेखा (मोबाइल पर) : गाडी से ही जाना वहाँ. ज्यादा पैदल चलकर अपने ह्रदय को तकलीफ मत दो.

रेखा फ़ोन बंद कर देती है.

नित्या (रेखा की बाहों पर हाथ फिराकर) : कब तक ऐसे चलेगा ?

रेखा : रात को कोई संगठन वाले आने वाले हैं भैरव के पास. उसी के लिए सामान का इंतज़ाम करने के लिए गए हैं वो.

नित्या : संगठन वाले उससे पूजा करवाएंगे ?

रेखा : पता नहीं. भैरव बहुत पहुंचा हुआ तांत्रिक है. सिर्फ पूजा ही नहीं करता है. बारीकी से हर ग्राहक के बारे में जानकारी रखने की कोशिश करता है ताकि ग्राहक को लगे कि इस तांत्रिक के पास बहुत शक्ति है मंत्र से सब कुछ पता लगाने की.

नित्या : संगठन वालों की भी जानकारी लेने गया होगा.

रेखा : दूर-दराज़ के शहरों से भी लोग बुलाते हैं उसको तांत्रिक विधि से पूजा कराने के लिए.

नित्या : ये तांत्रिक-वान्त्रिक सब चोर-बाजारी का धंधा है.

रेखा : लेकिन मुझे लगता है कि उसको कुछ-कुछ अंदरूनी बातों का पता चल जाता है. उसकी पूजा में शायद दम है.

नित्या : या फिर वो लोगों के बारे में पता करके आता है, या फिर गोल-मोल घुमाकर अनुमान लगाता है.

रेखा : जाने दो. अब तुम आ गए हो तो मेरे हाथों की इलाइची-स्पेशल चाय पी कर जाओ.

नित्या हामी भरता है. रेखा किचन की तरफ जाती है.

रेखा : तब तक तुम भैरव की किताब देखो. मालूम है ना कहाँ रखी है ?

नित्या (पीछे पलटकर) : ये कोई पहली बार थोड़े ही आया हूँ मैं इस घर में.

रेखा अन्दर चले जाती है. नित्या थोड़ी देर किताब देखता है.

नित्या (थोडा जोर से) : इस किताब में इसने जो भी लिखा है, उन बेवकूफों के लिए सही है जो इसमें विश्वास करते हैं.

रेखा (किचन में अन्दर से ही) : काफी सारे जादू-टोने टोटके लिखे हैं इसमें.

नित्या (जोर से) : बोलना नहीं चाहिए, लेकिन बहुत अच्छे से लिखा है. अच्छे से जानकारी दी है.

रेखा (अन्दर से ही) : बन गई चाय.

नित्या किताब रख देता है. और अपनी जेब से एक छोटी पिस्तौल निकाल लेता है.

रेखा चाय के दो कप लेकर प्रवेश करती है. नित्या पिस्तौल का निशाना रेखा की तरफ कर देता है. रेखा हाथ में चाय के कप लिए पिस्तौल को देखती है.

रेखा (आश्चर्य और थोडा डर से): नित्या ... नित्या ...

रेखा चाय के कप नीचे रख देती है.

नित्या गोली चलाता है. एक धमाका होता है. रेखा पेट पकड़कर दीवान पर बैठ जाती है.

नित्या हँसता है. रेखा धीरे-धीरे वापिस उठती है.

रेखा : नित्या ...

नित्या : कुछ नहीं है. कोई गोली नहीं है इसमें. सिर्फ दिवाली का धमाका है. सिर्फ आवाज़ है.

रेखा नित्या के पास आती है. पिस्तौल को सहलाती है.

रेखा : पिस्तौल तो बिलकुल असली दिख रही है.

नित्या : बिलकुल असली है. बस गोलियाँ नहीं हैं.

रेखा : इसकी आवाज़ से तो मेरी जान ही निकल गई थी.

नित्या : और अब तुम झोपड़पट्टी में भी नहीं रह रही हो कि किसी को आवाज़ सुनाई दे. बंगलेवाली हो. और आसपास के बंगलों तक आवाज़ भी नहीं जायेगी.

रेखा : अब तक तो किसी भी पडोसी का न कोई फ़ोन आया है, न ही कोई देखने आया है कि आवाज़ कहाँ से आई.

नित्या (रेखा के हाथ पकड़कर) : और कोई आएगा भी नहीं. किसी को कुछ नहीं पड़ी है. और पहली बात इतनी दूर तक धमाके की आवाज़ जायेगी ही नहीं.

रेखा (चाय के कप वापिस हाथों में लेकर) : चाय पी लो. ठंडी हो जायेगी.

नित्या और रेखा दोनों चाय पीते हैं.

रेखा : पिस्तौल कहाँ से जमाई ?

नित्या : सब जम जाता है. साढ़े तीन हज़ार रुपये देकर खरीदी है. अब अपनी हो गई.

रेखा हंसकर नित्या का हाथ अपनी छाती पर रख देती है.

रेखा : अभी तक जोर जोर से दिल धड़क रहा है.

नित्या : बात सिर्फ धमाके की नहीं है. जब पिस्तौल और मौत सामने दिखती है, तो अच्छे अच्छों के होश उड़ जाते हैं. मौत का फ़रिश्ता दिल में बैठकर अट्टाहस करता है तो दिल जोर जोर से धड़कने लगता है. धमाके के कारण नहीं.

रेखा : और कोई तरीका सोचा है ?

नित्या : यही सबसे अच्छा तरीका है.

रेखा : कभी कभी सोचती हूँ कि भाग जाऊं यहाँ से तुम्हारे साथ.

नित्या : नहीं, बिलकुल नहीं. अब तो हम मंज़िल के बहुत करीब आ गए हैं. कितनी बड़ी बेवकूफी होगी अगर अब हम लोग भाग गए तो.

रेखा : हम्म... अब सब कुछ हाथ में आता नज़र आता है.

नित्या : ज़रा सोचो - मैं, तुम, और ये सारी दौलत ...

रेखा चाय के कप उठाकर अन्दर रख आती है.

रेखा : तुमको मैंने बताया नहीं. तकरीबन छः महीने पहले, सावनेर भुजिआवाला का मालिक आया था.

नित्या : जिसके भुजिया के पैकेट पूरे देश में बिकते हैं ?

रेखा : हाँ, वही. भैरव से पूजा करवाकर गया.

नित्या सिर पकड़कर दीवान पर बैठ जाता है.

नित्या : ये तो पहुंची हुई हस्ती लग रहा है.

रेखा : अब तुम सोचो कि जिसका कारोबार पांच सौ करोड़ से ज्यादा का धंधा करता है साल में, उसने कितने पैसे दिए होंगे भैरव को पूजा करने के !

नित्या : कम से कम दस-बीस लाख तो आराम से.

रेखा : अब ये भी सोचो कि वो पैसा कहाँ गया ? कहाँ पर दबा कर रख दिया भैरव ने ?

नित्या : और तुम्हारे हाथ में क्या लगा ?

रेखा : कुछ भी नहीं. (जोर से) कुछ भी नहीं !!

नित्या दांत भींच लेता है.

रेखा : पत्नी के हिस्से में आधा तो आना ही चाहिए.

नित्या : आधा क्यों ? पूरा क्यों नहीं ? फिर घर की लक्ष्मी क्यों कहते हैं पत्नी को ?

रेखा : मेरा बीमा अब तक नहीं हुआ है. खुद का जीवन बीमा जरूर करवाकर रखा होगा. मुझे मालूम भी नहीं है.

नित्या : हस्पताल में उसका हार्ट अटैक का पूरा मेडिकल बिल बीमे वालों ने ही भरा होगा.

रेखा : किसी कम्पनी की तरफ से बिल का भुगतान हुआ था.

नित्या : मैं तुमको कभी भी धोखे में नहीं रखूंगा.

रेखा : हम लोग अच्छे से दिन गुज़ार सकते हैं.

नित्या : मेरे जाने का समय हो गया है.

रेखा : चावला वाले की फैक्ट्री वाली नौकरी का क्या हुआ ?

नित्या : बस अब सीधा यहाँ से उसी के पास जा रहा हूँ. फैक्ट्री में मशीनों पर काम करने वाले कारीगरों पर नज़र रखने की नौकरी है. दिलीप ने इस नौकरी के बारे में बताया है. जाकर मालिक से बात करके देखता हूँ.

रेखा : भगवान् करे तुमको ये नौकरी मिल जाए. ये मैनेजर की नौकरी होगी.

नित्या : आधे घंटे में उसके पास पहुंचना है. ठीक है, चलता हूँ.

रेखा (नित्या का हाथ पकड़ लेती है) : सब कुछ आसानी से हमारा हो सकता है.

नित्या : रेखा ...

रेखा नित्या को दरवाज़े तक छोड़ आती है. नित्या चला जाता है.

रेखा किचन में चले जाती है.

थोड़ी ही देर में भैरव का आगमन होता है. भैरव रेखा को आवाज़ लगाता है.

भैरव : रेखा ...

रेखा अन्दर से आती है.

रेखा : आ गए ?

रेखा भैरव के हाथ से थैला लेकर मूर्ती के पास रख देती है.

भैरव : आज रास्ते में एक पहचानवाली मिल गई. मुझसे अपनी बीमारी के लिए वहीँ रस्ते पर कोई विधान बताने को बोल रही थी.

रेखा : सब लोग आपको पहचानते हैं.

भैरव : कभी कभी मुसीबत लगती है.

रेखा : संगठन वाला काम हुआ ?

भैरव : पूरा नहीं हुआ, अभी भी बहुत काम पड़ा है.

रेखा : संगठन के कुछ लोग अपना भविष्य बताने के लिए भी बोलेंगे आपको.

भैरव : कोई नयी बात नहीं है. हमेशा ही ऐसा होता है. जहां भी जाता हूँ, कोई न कोई पूछता ही है - "अभी घर में ऐसा चल रहा है, मुझे क्या करना चाहिए ?" बिना पूरी तैयारी किये उसी समय पर इनको उत्तर कैसे दे पाऊंगा ?

रेखा : आप अनुमान लगाते हैं, तो गलत नहीं निकलता है ?

भैरव : बिलकुल निकलता है. शुरू-शुरू में तो ऐसा बहुत होता था. सब साधना, अध्ययन और परिश्रम की बात है. और मेरे दोस्त यशेंद्र का भी योगदान है. यशेंद्र आया था क्या ?

रेखा : अभी तक तो नहीं आया है. मैं पूरा समय घर पर ही थी.

भैरव : आज उसका आना बहुत जरूरी है.

रेखा : मैं एक ग्लास दूध लेकर आती हूँ आपके लिए.

भैरव : कितना ख्याल रखती हो तुम मेरा.

रेखा : आपका काम भी तो कितना तनावपूर्ण है. मैं चाहती हूँ कि आप लम्बे समय तक मेरे साथ रहो.

भैरव : अपने बीवी होने का पूरा फ़र्ज़ निभा रही हो तुम.

रेखा : आपके साथ रहने के लिए शादी की है मैंने आपसे.

दरवाजे पर घंटी बजती है.

रेखा : मैं देखती हूँ.

भैरव : यशेंद्र ही होगा.

रेखा दरवाज़ा खोलती है. तांत्रिक वेश में ही तांत्रिक जैसे कपडे पहने तकरीबन 35-वर्षीय आदमी प्रवेश करता है.

रेखा मंत्रमुग्ध होकर उसको देखती है.

भैरव : कौन है ?

केदारनाथ : केदारनाथ है.

केदारनाथ अन्दर आ जाता है. दोनों भैरव और केदार गले मिलते हैं. रेखा अन्दर चले जाती है.

केदार : किसी और का इंतज़ार था क्या ?

भैरव : हाँ भाई, यशेंद्र का इंतज़ार कर रहा हूँ. आज उसका आना बहुत जरूरी है.

केदार : आ जायेगा. और सुनाइये ? कहीं जा रहे हैं क्या आप ?

भैरव : रात को ज़रीबाग संगठन वाले आने वाले हैं.उसी की तैयारी में लगा हूँ. तुम बताओ.

केदार : बस ऐसे ही आ गया आपसे मिलने. थोड़े ही दूरी पर किसी ने पूजा के लिए बुलाया था. मैंने सोचा आपसे मुलाक़ात करता चलूँ. अच्छा हो गया आप घर पर मिल गए.

भैरव : अच्छा हो गया तुम आ गए. एक बात बताओ. तुम्हारी उस टीवी चैनल वाले से पहचान थी ना जिसपर पहले निर्मल बाबा और फिरस्वामी चिन्मयानन्द आते थे और भरी सभा में सबको उनके दुख-दर्दों का इलाज़ बताते थे ?

केदार : है तो सही.

भैरव : चिन्मय को शायद अब नहीं ला रहे हैं वो लोग.

केदार : हाँ, उसके खिलाफ जनता बहुत भड़क गई थी कि भोले भाले लोगों को मूर्ख बना रहा है. इसीलिए टीवी चैनल वालों ने उसको पीछे कर दिया है.

भैरव : लेकिन मुझे नहीं लगता है कि हर किसी स्वामी का वही हाल होगा जो चिन्मय का हुआ.

केदार : चिन्मय की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई थी. कुछ पहुंचे हुए लोगों को ये बात हज़म नहीं हुई. उन्हीं लोगों ने जनता को भड़काया. भड़की हुई जनता टीवी चैनल पर अपना गुस्सा उतारने लगी. उनके स्टूडियो में जाकर तोड़-फोड़ किया और चिन्मयानन्द के खिलाफ नारे लगाए. अगली बार से चैनल वालों ने उसका कार्यक्रम नहीं रखा.

भैरव (कुछ सोचते हुए) : हम्म...

केदार : चैनल में कार्यक्रम जिसके हाथ में था, उससे मेरी अच्छी पहचान है.

भैरव : उसको मेरे नाम से बोलकर देखो.

केदार : चिन्मय के एवज में ?

भैरव : कार्यक्रम वैसा ही रहेगा, उसकी रूपरेखा वैसी ही रहेगी, बस स्वामीजी के बदले मेरा स्थान होगा.

केदार : पता नहीं वो मानेंगे या नहीं. अभी अभी तो जनता के झटके से उबरे हैं.

भैरव : बात करके देखने में कोई हर्जा नहीं है. अगर अभी नहीं, तो भविष्य के लिए ध्यान में रखेंगे.

केदार : मैं आज ही उनसे बात करके देखूँगा कि क्या बोलते हैं.

भैरव : ठीक है. खाना बनकर तैयार है.

केदार : आप अपनी शक्ति से मुझे बताइये कि मुझे क्या पसंद है ?

भैरव : केदार, औरों की तरह तुम भी मेरी परीक्षा ले रहे हो क्या ? (हंसकर) इस वक़्त तुमको चाहिए सिर्फ रोटी और एक कटोरी सब्जी.

केदार : वो तो मैंने ही तुमको बता दिया था जब पिछले हफ्ते हम इसी समय पर मिले थे.

भैरव : उस समय मैं थोड़ी देरी से घर पर आया था ...

केदार : ... और भाभीजी ने पहले से मेरे लिए भोजन परोस दिया था, जिससे आपको पता चल गया कि इस वक़्त मैं खाना पसंद करता हूँ.

भैरव : बिलकुल. हर छोटी छोटी बात का ध्यान रखने में ही मेरी हर परीक्षा की सफलता है.

केदार : दरअसल आपके घर तो मैं कई बार इस वक़्त पर भोजन कर चूका हूँ.

भैरव : इसीलिए तुम्हारी भोजन की आदतों से मैं वाकिफ हूँ.

केदार : सर्वत्र जानकारी ही असली तांत्रिकी शक्ति है.

भैरव : यही तो हमारे जीवन का जरिया है.

केदार : आपकी किताब की भी बिक्री अच्छी चल रही है ?

भैरव : अगर टीवी चैनल पर आने को मिल जाता है, तो किताब का और विज्ञापन हो जाएगा. किताब से भी अच्छी खासी आमदनी हो जाती है.

केदार (मुस्कुराकर) : आमदनी की तो खैर आपको और ज़रुरत नहीं है.

भैरव : और ज्यादा आमदनी की ज़रुरत किस को नहीं रहती है ? संगठन वाला काम भी तो इसीलिए जरूरी है. संगठन में से फिर एक एक करके अकेले में मिलने चले आते हैं.

केदार : पहले तो आप इतना ज्यादा सक्रीय होने की चेष्ठा नहीं करते थे. अब इतने सालों के बाद अचानक ऐसा क्यों ?

भैरव : कितनी अद्भुत बात है. मोबाइल और कंप्यूटर की इतनी आधुनिक दुनिया हो गई है, फिर भी लोगों को चमत्कारों की ज़रुरत है.

केदार (हंसकर) : तो अब आप चमत्कारों के व्यापारी बनना चाहते हैं ?

भैरव : सबको लगता है कि कोई जादुई मानसिक शक्ति है. बहुतों को लगता है कि मैं धोखेबाज़ हूँ. उनको लगता है कि तांत्रिकी का धंधा छल-कपट का धंधा है.

केदार : लेकिन वो यकीन के साथ ऐसा नहीं कहते हैं.

भैरव : यही तो बात है. एक तरफ उनको लगता है कि मैं धोखेबाज़ हूँ, दूसरी तरफ उनको लगता है कि मेरे पास वाकई कोई जादुई शक्ति है, इसीलिए वो मुझसे सम्मोहित रहते हैं.

केदार (उठते हुए) : इसीलिए तो हमारे ऊपर दबाव बना रहता है.

भैरव (उठते हुए) : रात को संगठन में शायद बीस-पच्चीस लोग होंगे.

केदार : आपको कैसा लग रहा है ?

भैरव : दो-चार को खड़ा करके सटीक प्रमाण देना पड़ेगा, नहीं तो सब छलिया ही समझेंगे.

केदार (अपने दिल पर हाथ रखकर) : और शरीर के हिसाब से सब कुछ कैसा है ?

भैरव : केदार, तुम भी ! वैसे ही मेरी फ़िक्र कर रहे हो जैसे रेखा करती है ! डेढ़ साल होने को आ रहा है हार्ट अटैक वाले किस्से को. अब सब सामान्य हो गया है. एक भी धड़कन से दिल नहीं चूकता है. अब तो मैं सबेरे दौड़ भी लगाता हूँ. कभी मेरे साथ दौड़ लगा कर देखना !

केदार चले जाता है.

रेखा अन्दर आती है.

रेखा : आप थक गए होंगे ?

भैरव : मेरा छोटा तौलिया कहाँ है जो मूर्ती के पास ही मैं रखता हूँ ? आज सबेरे ही तो उसको घडी करके मूर्ती के सामने ही रखा था.

रेखा : वहीँ तो था.

दोनों थोड़ी देर यहाँ-वहाँ देखते हैं. तौलिया दीवान के पास किनारे पर मिलता है.

भैरव (तौलिया उठाते हुए) : ये रहा. यहाँ कैसे पहुँच गया ?

रेखा (दीवान की चादर ठीक करते हुए) : सफाई में यहाँ-वहाँ हो गया होगा.

भैरव (तौलिए को गंभीरता से देखते हुए) : इसपर दाग लगे हैं.

रेखा (तौलिए को देखते हुए) : चाय के दाग हैं. शायद थोड़ी गिर गई होगी.

भैरव : तो मेरे पीठ पीछे भी चाय बना कर पी जा रही है !

रेखा (हंसकर) : मुझे माफ़ कर दो !

भैरव (हंसकर) : क्या बात कर रही हो !

रेखा तौलिए को हाथ में ले लेती है.

रेखा : इसे धुलवाने के लिए डाल देती हूँ.

भैरव : मैं नहा कर आ जाता हूँ.

भैरव अन्दर जाता है.

रेखा का मोबाइल बजता है.

रेखा (मोबाइल पर) : नित्या ...

रेखा (मोबाइल पर) : चावला वाले फैक्ट्री के मालिक से मुलाक़ात हो गई ?

रेखा (मोबाइल पर) : क्या हुआ वहाँ पर ?

रेखा (मोबाइल पर) (हताशा और आश्चर्य से) : नहीं दिया नौकरी ?! क्यों नहीं दिया ?

रेखा (मोबाइल पर) : तुम्हारे पुराने अतीत से उसको क्या लेना-देना है ?

रेखा (मोबाइल पर) : ऐसे तो नौकरी लग भी गई और बाद में किसी ने उनको कुछ उल्टा-सीधा बता दिया, तो आई हुई नौकरी भी हाथ से निकल जायेगी.

रेखा (मोबाइल पर) : तुम निराश मत होना. कुछ न कुछ तो ज़रूर हो जाएगा.

रेखा (मोबाइल पर) : मैं तो हमेशा ही तुम्हारे साथ रहूंगी.

भैरव (अन्दर से आवाज़ लगाता है) : रेखा ...

रेखा (मोबाइल पर) : बस अब मैं रखती हूँ.

रेखा (मोबाइल पर) : ज्यादा मत सोचना चावला के बारे में. बाद में बात करती हूँ.

रेखा मोबाइल पर बात करना बंद कर देती है.

भैरव (अन्दर से आवाज़ लगाता है) : रेखा ...

रेखा : जी, आ रही हूँ.

भैरव खुद अन्दर से आ जाता है.

दरवाजे पर घंटी बजती है.

दोनों पलटकर दरवाजे की तरफ देखते हैं.

भैरव : अब तो पक्का यशेंद्र को होना चाहिए.

रेखा : मैं देखती हूँ.

रेखा दरवाजे पर जाती है. तकरीबन 30 साल की उम्र का एक आदमी प्रवेश करता है.

भैरव : अहा, यशेंद्र ! कितनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था !

यशेंद्र : भैरवजी, सादर प्रणाम !

भैरव : आओ, आओ, बैठो.

यशेंद्र : माफ़ करना, आने में थोड़ी देरी हो गई.

भैरव : कोई बात नहीं.

यशेंद्र : सबकी जानकारी लेने में समय लग गया.

दोनों नीचे गद्दी पर बैठ जाते हैं. रेखा अन्दर चले जाती है.

यशेंद्र : संगठन में कुछ बीस-एक व्यक्ति हैं. सभी के घर के पते तो मिल गए हैं. उनके घर के बाहर से उनकी गाड़ियों के नंबर भी ले लिए हैं !

भैरव : गाड़ियों के नंबर तक जाने की जरूरत नहीं थी.

यशेंद्र : लेकिन ये तो पक्का करना था कि ये लोग वाकई उस पते पर रहते हैं या नहीं.

भैरव : उनके घर के पते कैसे मिले ?

यशेंद्र : वो राज़ मैं आपको बता दूंगा तो मेरी रोज़ी-रोटी कैसे चलेगी ?

भैरव : मुझे भी क्या करना है ये जानकर. मैं थोड़े ही उनके घर तक उनका पीछा करते रहूँगा. हर बार तो यह काम मैं तुमको ही दूंगा.

यशेंद्र : सही बात है. खैर, घर के पते मिलना बहुत सरल होता है. संगठन के कार्यालय में उनकी वार्षिक रिपोर्ट वाली पत्रिका होती है. इसमें संगठन के सब सदस्यों के नाम, मोबाइल नंबर और घर के पते लिखे हुए हैं.

भैरव : बढ़िया !

यशेंद्र : और अब कुछ कुछ विशिष्ट जानकारी, हमारे ख़ास सदस्यों के लिए.

भैरव : बहुत जरूरी है.

यशेंद्र : तो पहली यह -इसमें एक हैं रामविलास. उनके घर पर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है. घर के ऊपर दूसरी मंज़िल बन रही है.

भैरव : ठीक है.

यशेंद्र : दूसरे हैं श्रीमान सरोता साहब. इनकी गाडी पिछले हफ्ते ठुक गई. उनको तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन गाडी को जबरदस्त चोट पहुंची है.

भैरव : ठीक है.

यशेंद्र : तीसरे, कोई डॉक्टर रेवाला हैं. इनके क्लिनिक पर भी जा आया हूँ. सब प्रकार के मरीजों को देखते हैं. हाल ही में इनके दवाखाने पर हो-हल्ला मच गया था. कोई छ:-सात साल का बच्चा था, जिसको नर्स ने शायद गलत इंजेक्शन दे दिया था, तो वो मौत के मूंह तक पहुँच गया था. बाद में बच गया.

भैरव : ये हुई ना कोई खबर.

यशेंद्र : चौथी हैं श्रीमती वडेरा. हर हफ्ते इनके घर पर किटी पार्टी होती है. शहर की अमीर महिलाएं आती हैं किटी पार्टी में.

भैरव : अच्छा है. इन सबके पति-पत्नियों के नाम और वो क्या काम करते हैं ?

यशेंद्र : जितनी जानकारी मैं ले सका, उतनी ले ली है. (जेब से एक कागज़ निकालते हुए) सब इसमें लिखे हैं.

भैरव : बहुत बढ़िया. पास-पड़ोसियों को खबर तो नहीं लगी कि कोई इन लोगों की जानकारी ले रहा है ?

यशेंद्र : आप यशेंद्र से काम करवा रहे हो ! हर काम बारीकी से करता हूँ. जितना ज्यादा समय आप मुझे दोगे, उतनी ज्यादा जानकारी और उतने अच्छे से जानकारी ला सकता हूँ मैं आपके लिए. जैसे किटी पार्टी - पूरा एक हफ्ता लगा मुझे पूरा समय वडेरा मैडम का पीछा कर-करके कि वो किसके पास जा रही है, कौन किस समय उसके पास आ रहा है. बीच-बीच में तो खैर औरों का भी पता लगाते रहना पड़ा.

भैरव : अच्छा हो गया कि संगठन वालों की तरफ से दो हफ्ते पहले से जानकारी थी कि कब वो आनेवाले हैं.

यशेंद्र : अरे, एक बहुत बढ़िया वाला तो मैं भूल ही गया. संगठन में एक दंपत्ति शामिल है,चिराग. तीन दिन पहले मिस्टर और मिसेज़ चिराग के बीच किसी बात को लेकर बहुत झगडा हुआ. बाहर तक आवाजें आ रही थीं.

भैरव : कौन सी बात को लेकर.

यशेंद्र : ये तो पता नहीं. लेकिन बहुत जोर-जोर से हो रहा था.

भैरव : अगर ये पता रहता कि वो क्या बात थी, तो मज़ा आ जाता. खैर, इतने का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

यशेंद्र : मैं चलूँ ? आपको भी आज रात की तैय्यारी करनी है.

भैरव (उठते हुए) : ठीक है. मुझे मोबाइल पर हरेक के फोटो उनके नाम के साथ भेजना न भूलना.

भैरव अपनी जेब से एक लिफाफा निकाल लेता है.

भैरव : आज एक महिला आई थी अपने पति के वशीकरण के सिलसिले में. उसके लिए एक छोटी पूजा भी की थी. उसने इस लिफ़ाफ़े में मुझे बीस हज़ार दिए. ये तुम रख लो.

भैरव लिफाफा यशेंद्र को दे देता है.

यशेंद्र लिफाफा लेकर अपनी जेब में रख लेता है, और प्रस्थान करता है.

मंच पर धीरे-धीरे सब बत्तियां बंद हो जाती हैं.

थोड़ी देर बाद सब बत्तियां धीरे-धीरे वापिस शुरू हो जाती हैं.

रात का समय हो गया है.

एक-एक करके संगठन वाले आ रहे हैं और ज़मीन पर बिछी चादर पर बैठने लगते हैं.

तकरीबन बीस लोग आकर बैठ जाते हैं.

भैरव अन्दर से आता है. सब लोग खड़े होकर उसको प्रणाम करते हैं. भैरव उनको बैठने का अंदेशा करता है. वह खुद देवी माता की मूर्ती के सामने बैठ जाता है. सब लोग नीचे बैठ जाते हैं.

भैरव (दाहिना हाथ उठाकर आशीर्वाद की मुद्रा में) : माता सबका भला करे. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.

सभी मंत्र दोहराते हैं : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.

भैरव : माता सबका भला करे.

एक आदमी उठ खड़ा होता है.

रामविलास : प्रणाम बाबा. मेरा नाम रामविलास है.

भैरव : प्रणाम.

रामविलास : बाबा आपका आशीर्वाद चाहिए.

भैरव : बेटा घर हो या परिवार,जब एक से दो या दो से तीन होते हैं, तो बेहद ख़ुशी की बात होती है.

रामविलास चौंक जाता है. वह बाबा के पैरों पर गिर जाता है.

रामविलास : बाबा आपको तो सब पता है.

भैरव : बेटा, मैं नहीं देखता हूँ. माता सब देख रही है. माता तो सबका सब कुछ देखती रहती है. उसी से मैं गुफ्तगू करता हूँ.

रामविलास : बाबा, जब घर पूरा बन जाएगा, तो आप ही को सबसे पहले आकर उसकी पूजा करनी है.

भैरव : जरूर आऊँगा बेटा.

भैरव, माता के चरणों से, एक फूल रामविलास को दे देता है.

रामविलास फूल लेकर बाबा को प्रणाम कर, वापिस आ बैठता है.

एक महिला उठती है.

वडेरा : बाबा, मेरा नाम रश्मि वडेरा है. मेरे पति को मेरा यहाँ आना शायद पसंद नहीं. इसीलिए वो नहीं आए.

भैरव : कोई बात नहीं है बेटा. सबकी अपनी अपनी आस्था है.

वडेरा : बाबा, वैसे तो वो पूजा-अर्चना जरूर करते हैं. बिज़नेस में लाभ के लिए तो लक्ष्मीजी की पूजा जरूर करते हैं. लेकिन बाबा के दर पर आना नहीं चाहते.

भैरव : कोई बात नहीं है. अगर तुम उनकी तरफ थोडा-सा और ध्यान दो तो वो खुश होकर तुम्हारीये बात भी मान लेंगे.

वडेरा : मैं समझी नहीं बाबा.

भैरव : बेटा यहाँ आकर देवी माता को नमस्कार करो, वो ही बता सकेगी.

वडेरा सामने आकर बाबा की और मूर्ती के पैर छूती है.

भैरव : बेटा अमीरों के शौक और तौर-तरीके अलग होते हैं.

वडेरा : जी बाबा. लेकिन मेरा तो ऐसा कुछ ख़ास नहीं है.

भैरव : बेटा अगर पार्टियां कम हो तो शायद पति ज्यादा खुश हो जाए और तुम्हारी ज्यादा बातें मानने लगे.

वडेरा बाबा के पैर छूती है.

वडेरा : बाबा, आप के सामने तो कोई राज़ नहीं है. सब पता है आपको. मैं अगले हफ्ते आपसे आकर जरूर मिलूंगी.

भैरव : मुझे तुम्हारे लिए पूजा करने में बेहद आनंद मिलेगा.

भैरव एक फूल वडेरा को दे दता है. वडेरा फूल लेकर वापिस अपनी जगह पर आकर बैठ जाती है.

एक और महिला खड़ी होती है.

मिसेज चिराग : हरी ॐ बाबा. मैं जानकी चिराग हूँ.

भैरव : हरी ॐ बेटा.

मिसेज चिराग : बाबा ...

भैरव : क्लेश.

मिसेज चिराग : जी ?!

भैरव : क्लेश.

मिसेज चिराग :एकदम सत्य है बाबा.

भैरव : यहाँ आओ बेटा. तुम्हारे माथे की लकीरों को स्पष्ट देखना है.

मिसेज चिराग भैरव के आसन तक आ जाती है. भैरव उसके ललाट की रेखाओं का अध्ययन करता है.

भैरव : झगडा, क्लेश -घर-परिवार की शांति को भंग करता है.

मिसेज चिराग : बाबा, आप तो सब जान गए.

भैरव : सब कुछ भाग्य की लकीरों ने माथे पर लिख दिया है.

मिसेज चिराग : घर में अशांति है बाबा.

भैरव : बेटा,कालाष्टमी की रात को जो सच्चे मन से जो भैरव जी की पूजा करता है और शुद्ध मन से उपवास करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. आनेवाली कालाष्टमी को मैं तुम्हारे लिए भैरवजी की पूजा करूँ ? उस दिन पूरे दिन तुमको व्रत रखना पड़ेगा.

मिसेज चिराग : बिलकुल बाबा. आप पूजा कीजिये. मैं व्रत रखूंगी.

भैरव : ठीक है बेटा, भैरवनाथ तुम्हारे सब क्लेश दूर कर देगा. कालाष्टमी के दिन सबेरे फल का टोकरा लेकर आ जाना.

मिसेज चिराग : जरूर आऊँगी बाबा.

मिसेज चिराग बाबा को प्रणाम कर वापिस आकर बैठ जाती है.

एक आदमी उठता है.

सरोता : बाबा प्रणाम. मैं जय सरोता.

भैरव: प्रणाम.

सरोता : बाबा,बस आपकी कृपा चाहिए.

भैरव : बेटा, मुझसे ज्यादा, तुमको मारुतिजी की कृपा चाहिए !

सरोता : मारुति जी की ?

भैरव : मारुति ही वाहनों की रक्षा करते हैं.

सरोता हैरत में पड़कर भैरव को देखता है.

सरोता (धीरे से) : जी ...

भैरव : तुमने मारुति की पूजा नहीं की है. मारुति तुमसे नाराज़ हैं. जो मारुति जी की पूजा नहीं करता है,उससे मारुति नाराज़ हो जाते हैं. और जिससे मारुति जी नाराज़ हो गए,उसका वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है.

सरोता (डरकर और सकपकाकर) : जी ...

भैरव : मंगलवार को प्रातः आठ बजे यहाँ आ जाना. हनुमानजी की मूर्ती के सामने धूप-दीप जलाकर अष्टगंध से भोजपत्र पर एक यंत्र लिखेंगे और उसको पढ़कर पूजा करेंगे.

सरोता : जी, बिलकुल. मैं मंगलवार को आठ बजे आ जाऊँगा.

भैरव : पूजा के बाद उस मंत्र को अपनी गाडी में रख देना.

सरोता : जी. मैं बहुत बहुत आभारी हूँ आपका जो आपने मुझे यह मार्ग सुझाया. मैं तो बहुत परेशानी में था.

भैरव : ॐ मारुतात्मने नम: हरि मर्कट, मर्कटाय स्वाहा.

सरोता भैरव के चरण छूकर वापिस अपनी जगह आकर बैठ जाता है.

एक और आदमी अपनी जगह से उठता है.

डॉक्टर रेवाला : जय भोलेनाथ बाबा.

भैरव : हर हर महादेव.

डॉक्टर रेवाला : बाबा, मैं डॉक्टर रेवाला हूँ.

भैरव : डॉक्टर साहब, आप भी मरीजों का दुख-दर्द दूर करते हैं, हम भी यही करने का प्रयास करते हैं.

डॉक्टर रेवाला : हमारे पेशे में तो ...

भैरव : मैं समझ गया डॉक्टर साहब. जान का धोखा. जान का धोखा बना रहता है आपके पेशे में.

डॉक्टर रेवाला : बिलकुल.

भैरव : हमारा तो इरादा नेक रहता है. लेकिन कहीं न कहीं किसी न किसी जगह पर चूक हो जाती है. और फिर सब ओर हाहाकार. आतंक. हो-हल्ला. जान की दुहाई.

डॉक्टर रेवाला सामने आकर बाबा के पैर छूता है.

डॉक्टर रेवाला : आपने तो कमाल कर दिया बाबा.

भैरव : सब माता का कमाल है. बेटा, मैं तुमको एक चीज़ दे दूंगा. तुम उसको अपने क्लिनिक के बाहर लगा देना. फिर देखते हैं कि किस चुड़ैल या भूत-पिशाच की गन्दी नज़र पड़ती है वहाँ पर.

डॉक्टर रेवाला : जी बाबा, ये काम तो मैं बिलकुल कर सकता हूँ.

भैरव : ठीक है, अगले हफ्ते यहाँ आ जाना. उस चीज़ को देवी माता के सामने रखकर पहले पूजा करेंगे, फिर तुम उसको लेकर जा सकते हो.

डॉक्टर रेवाला : बेहतरीन बाबा.

डॉक्टर रेवाला बाबा के पैर छूकर अपनी जगह बैठ जाता है.

एक व्यक्ति सामने बाबा के पास आकर खड़ा हो जाता है.

व्यक्ति (संगठन के सब लोगों को संबोधित करते हुए) : दोस्तों,अब हम लोग बाबा का ज्यादा समय नहीं लेंगे. बाबा ने हमको अपना इतना कीमती समय दिया, उसके हम सब लोग शुक्रगुज़ार हैं. (फिर बाबा की तरफ मूंह करके) बाबा,आपका तहेदिल से शुक्रिया. आप हमारे साथ हमेशा बने रहें और हमको आशीर्वाद देकर मार्ग दिखाते रहें, बस इतनी ही विनंती है आपसे.

भैरव (व्यक्ति को संबोधित करते हुए) : मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम लोगों के साथ है. आप बस पांच मिनट बैठ जाइए. आरती करके जाना है सबको.

व्यक्ति बैठ जाता है. भैरव आरती शुरू करता है. सब साथ में आरती करते हैं.

भैरव : जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी. तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी.

ओम जय अम्बे गौरी

मांग सिन्दूर विराजत,टीको मृगमद को. उज्जवल से दो‌उ नैना, चन्द्रवदन नीको.

ओम जय अम्बे गौरी

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता. भक्‍तन के दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता.

ओम जय अम्बे गौरी

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै. रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै.

ओम जय अम्बे गौरी

एक-एक करके सब प्रसाद लेकर बाहर जाते हैं.

मंच पर अँधेरा हो जाता है.

अगले दिन सबेरे.

कमरे में रेखा आती है. कमरे में और कोई नहीं है.

रेखा का मोबाइल बजता है.

रेखा : नित्या ...

रेखा (थोडा रूककर) : नहीं एकदम से अभी मत आओ. भैरव अभी यहीं है. सात बजे वो भोलेनाथ के मंदिर पर जाएगा. तुम ठीक सात बजकर पांच मिनट पर आ जाना.

रेखा फ़ोन बंद कर देती है. वह दीवान की चादर झटकती है. नीचे बिछी हुई चादर उठाती है. मूर्ती के सामने रखी हुई पुरानी मालाएं उठाती है, मूर्ती के सामने का थोडा कचरा हटाती है.

भैरव का प्रवेश.

भैरव : रेखा, मैं भोलेनाथ के मंदिर जा रहा हूँ.

रेखा : ठीक है.

भैरव चले जाता है. रेखा उसे जाते हुए देखती है.

रेखा कचरा फेंकने के लिए अन्दर जाती है.

जैसे ही वह कचरा फेंककर आती है, नित्या अन्दर आ जाता है.

नित्या : रेखा ...

रेखा : नित्या ...

दोनों करीब आ जाते हैं.

रेखा : ज्यादा समय नहीं है. भोलेनाथ के मंदिर से भैरव आधे घंटे में वापिस आ जाएगा.

नित्या : चावला वाली फैक्ट्री की नौकरी ... अच्छी नौकरी थी. मेरे लिए कितने दरवाज़े खुल जाते थे उससे. मेरा पूरा कैरियर बन जाता था. आज चावला की फैक्ट्री में मैनेजर,कल किसी बड़ी फैक्ट्री में मैनेजर, उसके बाद किसी इंडस्ट्री में मैनेजर, या कम से कम कोई अच्छा इज्ज़तदार काम मिल जाता था. पैसा भी इज्ज़त का मिलता. आज की तरह यहाँ-वहाँ से लूट खसोटकर नहीं. बहुत धोखे वाला काम है इस लूट में. चावला भले पैसा कम दे रहा था, लेकिन एक-दो सालों के बाद किसी और जगह पर और बढ़ जाता था.

रेखा : तुम चावला की चिंता मत करो नित्या. तुम बहुत ही कलाकार आदमी हो. कला तुम्हारे अन्दर कूट कूट कर भरी है. मैं तुमको अच्छे से जानती हूँ.

नित्या : चावला बोल रहा है कि मेरे अतीत के बारे में उसको पता चल गया है.

रेखा : तुम मायूस मत हो. तुम सबेरे उठकर अपने आप को यकीन दिलाना कि आज के दिन मुझे वो काम करना है जिससे मेरी ज़िन्दगी बदल जाए ... मुझे इज्ज़त के दो पैसे कमाने की नौकरी मिल जाए.

नित्या : रेखा ... मेरी हौसलाअफजाई करके मेरा आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश कर रही हो तुम.

रेखा : मैं दिल से चाहती हूँ कि तुम अपने पैरों पर खड़े होकर ज़िन्दगी में सफलता प्राप्त करो. और तुम जरूर सफल होगे. चावला की फैक्ट्री की नौकरी एक अच्छा पहला कदम थी.

नित्या : लेकिन वैसा हुआ नहीं. अगर मेरे अतीत को लेकर ऐसे ही काम हाथ से निकलता गया, तो तुम कब तक मेरा इंतज़ार करोगी ? और मैं कब तक तुम्हारा इंतज़ार करूंगा ?

रेखा : गुंडागर्दी करना एक बात है. पैसा लूटना,चोरी-चकारी एक बात है. डरा-धमकाकर पैसा वसूलना, हफ्ता वसूलना - ये सब अलग है. लेकिन किसी का खून ...

नित्या : खून तो मैं पहले भी कर चुका हूँ.

रेखा (थोडा पीछे आकर) : क्या बात कर रहे हो ?!

नित्या : याद है तुम्हारे को, जहां तुम रहती थी, उसके थोड़ी दूरी पर लाल मार्केट मेंकिसी हरमतराय की अनाज की बोरियों का गोदाम था.

रेखा : पता है. लेकिन हमने कभी उससे नहीं खरीदा. वो सिर्फ थोक में बेचता था. चिल्लर नहीं देता था.

नित्या : उसने हम लोगों की पैसा-वसूली से तंग आकर आत्महत्या कर ली. पुलिसवाले हमारे पीछे पड गए थे. पूरे दो महीने तक शहर से गायब रहना पड़ा था.

रेखा : तभी उसकी दूकान बाद में हमेशा ही बंद दिखती थी.

नित्या : ये भी तो एक प्रकार का खून ही है.

रेखा : ह्म्म्म ... लेकिन अगर हम थोडा रुक जाते ... इतनी जल्दी भी क्या है ?

नित्या : मतलब जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहे ?

रेखा : ठीक चल रहा है,किसी बात का खतरा, या मन में डर नहीं बैठा है.

नित्या : आज नहीं तो कल, भैरव को शक हो ही जाएगा. और तुम भी कितने बहाने बनाती रहोगी उससे ? पूरा समय मैं सिर्फ यही राह देखता रहूँ कि कब तुम बाहर निकलकर आ सकती हो, या कब वो घर से बाहर जाएगा, ताकि मैं पंद्रह मिनट तुम्हारे साथ गुज़ार सकूं. वो भी मुश्किल से हफ्ते में एक बार. और आज मेरे पास तुमको देने के लिए कुछ भी नहीं है. अगर मैनेजर की नौकरी होती मेरे पास, तो आज तुम्हारे लिए कोई अच्छी सी ड्रेस खरीद कर लाता. तुम्हारे पसंद की लाल रंग की सलवार कमीज़ खरीद कर लाता.

रेखा : और तुम्हारे यहाँ आने-जाने में बहुत खतरा भी है. कोई भी जान-पहचान वाला हमें देख सकता है.

नित्या : क्या कहना चाहती हो तुम रेखा ? क्या मैं यहाँ आना भी छोड़ दूं ? ताकि धीरे धीरे तुम मुझको पूरा ही भूल जाओ ?

रेखा : मैं कैसे भूल सकती हूँ तुमको नित्या ?

नित्या : जैसा चल रहा है, वैसा तो आगे बिलकुल नहीं चल सकता है.

रेखा : अगर तुमको अच्छी नौकरी मिल गई ...

नित्या : नौकरी तो मुझे सालभर के लिए वैसे भी करनी पड़ेगी, ताकि किसी को शक न हो. एक साल तक तो हमको एक दूसरे से दूर रहना ही पड़ेगा. उस एक साल में एक एक पल भारी पड जाएगा मेरे लिए. अगर मेरे पास करने के लिए कोई काम धंधा नहीं रहेगा पूरे सालभर, तो या तो मैं सोच-सोचकर पागल हो जाऊंगा, या फिर तुम्हारे दरवाजे के आस-पास भटकता रहूँगा.

रेखा : नहीं, नहीं. ऐसा बिलकुल मत करना. दोनों ही मुसीबत में पड़ जायेंगे.

नित्या : मैं अपना इरादा नहीं बदल सकता. अब तो मेरा इरादा और दृढ़ हो गया है.

नित्या अपनी जेब से अपनी पिस्तौल निकाल लेता है.

रेखा : हम दोनों के साथ का, और इस दौलत के साथ में आराम से ज़िन्दगी गुजारने का सिर्फ यही एक तरीका है ?

नित्या : पहले भी हम बहुत बातें कर चुके हैं इस बारे में. अब ठोस कदम लेने की बारी आ गई है.

रेखा नित्या के करीब आ जाती है.

रेखा : तुमने अपना मन पक्का बना लिया है ? बाद में तुम्हे कोई पछतावा तो नहीं होगा ?

नित्या (अपने चेहरे पर निश्चयता के भाव लाकर) : मेरा इरादा बन गया है. अब वापिस जाने में कोई बुद्धिमानी नहीं है.

रेखा : ठीक है. भैरव से मिलने के लिए आने का सबसे सही समय दोपहर के एक बजे है.

नित्या : ठीक है, तो मैं ठीक एक बजे पहुँच जाऊँगा.

रेखा : पांच-दस मिनट पहले ही पहुंचना.

नित्या : मैंने देखा है कि तुम लोगों का दरवाज़ा ज्यादातर खुला ही रहता है.

रेखा : भक्तों का आना-जाना लगा रहता है इसीलिए. वैसे भी मैं दरवाजा खुला ही छोड़ जाऊँगी.

नित्या : तुम वापिस कितने बजे तक आओगी ?

रेखा : मैं पांच बजे से पहले घर में आना नहीं चाहती हूँ.

नित्या : एक बजे से पांच बजे तक तो कम से कम बाहर ही रहना.

रेखा : मैं कोशिश करके बारह बजे ही निकल जाऊँगी. ताकि बाद में मुझे समय को लेकर कोई दिक्कत नहीं आए.

नित्या : ठीक है.

रेखा : और अगर हमारी योजना कामयाब नहीं होती है ? तो कुछ सोचा है तुमने ?

नित्या : मौत के मूंह में सर डाल ही दिया तो बाकी अंजामों से क्या डरना !

रेखा : किसी भी शंका की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.

नित्या (थोडा रूककर) : रेखा, एक बात सच-सच बताओ.

रेखा : बोलो.

नित्या : एक साल के बाद,तुम्हारे जैसी हसीन खूबसूरत और करोड़ों की मालकिन मालदार औरत ... तुमने मुझसे ही अपना पल्ला झाड लिया तो ?

रेखा : ऐसा कैसे हो सकता है नित्या ? पूरी योजना हम दोनों ने मिलकर बनाई है. तुमको भी तो सब अंदरूनी राज़ मालूम हैं.

नित्या : राज़ मालूम होने से क्या होगा ? मैं किसी को भी कुछ भी तो नहीं बता सकता. नहीं तो पुलिसवाले या दूसरे लोग मेरे ही पीछे पड़ जायेंगे. मेरी ही जान पर बन आएगी. मैं खुद खतरे में आ जाऊँगा.

रेखा : मुझपर भरोसा रखो नित्या. हमारे प्यार पर भरोसा रखो.

नित्या : भरोसा तो है मुझे.

रेखा अपना मोबाइल लाती है. और भैरव को फ़ोन लगाती है.

रेखा (मोबाइल पर) : भैरव, आप कहाँ तक पहुंचे हो ?

रेखा (मोबाइल पर) : अरे आप घर के नज़दीक पहुँच गए हो क्या ?

रेखा (मोबाइल पर) : कुछ नहीं, एक पाव धनिया चाहिए था. ख़तम हो गया है. वहीँ नानक के ठेलेवाले से ला लेते थे तो अच्छा होता था. आज सब्जी में लगेगा.

रेखा (मोबाइल पर) : हाँ, ला लो.

रेखा फ़ोन रख देती है.

रेखा : भैरव बस आने ही वाला है.

नित्या : ठीक है. मैं चलता हूँ.

रेखा (थोडा संकोच से) : अगर हम कुछ दिन और रुक जाते तो एक-दो लाख और हाथ में आ जाता.

नित्या : कैसे ?

रेखा : जो संगठन वाले आए थे, उनमें से बहुत से लोग भैरव से अच्छे-खासे प्रभावित हो गए हैं. अगले हफ्ते एक-एक करके भैरव ने उन्हें अलग अलग प्रकार की पूजा के लिए बुलाया है. किसी से पच्चीस हज़ार, किसी से तीस हज़ार, किसी से पचास हज़ार मिलेंगे भैरव को. इसीलिए अगर हम अगले हफ्ते तक रुक जायेंगे, तो दो लाख और हाथ में आ सकता है.

नित्या : नहीं. ऐसे तो हर बार कोई न कोई आता रहेगा और इस तांत्रिक का ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा. और वैसे भी भैरव तुम्हारे को कौन-सा पूजा का पैसा दे रहा है ? सब कुछ तो पता नहीं कहाँ जा रहा है ?

रेखा : इस घर के आसपास चारों तरफ के प्लाट भैरव ने ही खरीद कर रखे हैं. इसीलिए आसपास काफी खाली जगह है.

नित्या : ये सब उसने कैश देकर ही खरीदा होगा. इसके ऊपर टैक्स तो वो देगा नहीं.

रेखा : जो लोग कैश लाकर देते हैं, उनका भी तो काला धन है.

नित्या : दो-चार लाख की लालच में पूरे प्लान की फजीती हो जायेगी. इसीलिए यही प्लान ठीक है.

रेखा : ठीक है. अब तुम जाओ. भैरव आता ही होगा.

नित्या : ठीक है.

नित्या रेखा को गले लगाकर चले जाता है.

रेखा थोडा यहाँ-वहाँ का सामान और ठीक करती है.

थोड़ी ही देर में भैरव आ जाता है.

भैरव के आते ही मंच पर बत्तियां धीरे धीरे बंद होती हैं.

बत्तियां फिर धीरे धीरे शुरू होती हैं.

केदारनाथ का प्रवेश. केदारनाथ ने तांत्रिक की ही वेशभूषा धारण की हुई है.

केदारनाथ : भैरवजी, कैसे हैं आप ?

भैरव : बहुत बढ़िया केदार. आओ.

केदार अपना मोबाइल निकालकर भैरव की विडियो रिकॉर्डिंग करने लगता है.

भैरव : ये क्या कर रहे हो भाई ?

केदार : विडियो रिकॉर्डिंग कर रहा हूँ आपकी.

भैरव : मेरी विडियो रिकॉर्डिंग मत करो केदार. कैमरा को बंद कर दो.

केदार : क्या बात कर रहे हैं भैरवजी ? मेरा रिकॉर्डिंग करना आपको पसंद नहीं आ रहा है ?

भैरव : तुम बेकार ही में अपने मोबाइल की जगह भर रहे हो.

केदार : मैं इसे रिकॉर्ड करने के बाद मिटा भी तो सकता हूँ.

भैरव : ये तो बताओ कि रिकॉर्डिंग क्यों कर रहे हो ?

केदार : स्क्रीन-टेस्ट ले रहा हूँ आपका.

भैरव : क्यों ?

केदार : कैमरा सामने आने पर आप कहीं कॉन्शस तो नहीं हो जाते हो, ये देखने के लिए.

भैरव : हर कोई कॉन्शस हो जाता है कैमरा के सामने.

केदार : लेकिन आप को तो अब आदत डाल देनी पड़ेगी. अब कॉन्शस बिलकुल नहीं होना है.

भैरव : आदत क्यों डाल देनी पड़ेगी ?

केदार : क्योंकि मैंने टीवी चैनल वालों से बात कर ली है. वो मान गए हैं.

भैरव (खुश होकर) : अरे वाह ! ये हुई न कुछ बात !

केदार : टीवी चैनल पर कार्यक्रम जिसके हाथ में था, उससे मेरी पहचान है. उसीसे बात की मैंने. आपके बारे में सब कुछ बताया.

भैरव (खुश होकर) : क्या बात है ! अब तांत्रिकी फैलेगी !

केदार : अब तो समझो आपका मार्केट बढ़ गया. अब बहुत लोग आनेवाले हैं पूजा के लिए.

भैरव : कब से शुरू करने के लिए बोला है ?

केदार : कुछ ही दिनों में बता देंगे.

रेखा अन्दर से आती है.

भैरव : रेखा, सुन लिया ना तुमने ? टीवी चैनल वाला पक्का हो गया है. अब पूरे देशभर के लोग वहाँ श्रोता बनकर आएंगे. उसके बाद न जाने कितने पूजा करवाने के लिए आएंगे.

रेखा : इतना समय है सही आपके पास ?

भैरव : पूजा तो मैं 50-100 लोगों की एक ही बार बैठकर कर सकता हूँ. सबकी समस्याएं एक दूसरे से बहुत ज्यादा अलग नहीं रहती हैं. सबकी पूजा का ज्यादातर एक ही मकसद होता है - दुख का निवारण.

रेखा : सब केदारजी की मेहनत से हुआ है.

केदार : मेरा क्या है इसमें ! सब भवानी की कृपा है. और भैरवजी का जलवा है.

भैरव : जय महाकाली.

केदार (कुछ पन्ने अपने थैले से निकालते हुए) : टीवी चैनल वालों ने कुछ पेपर्स भेजे हैं. कुछ डाक्यूमेंट्स हैं जिनपर आपको दस्तखत करना है.

केदार पन्ने निकालकर भैरव को दिखाता है.

भैरव : क्या लिखा है इनमें ?

केदार : वही सब. कार्यक्रम में कोई अश्लीलता नहीं होनी चाहिए. चैनल के माध्यम से किसी का मज़ाक नहीं उडाना है, किसी भी धर्म-जाति के लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए. अगर लोग आपकी दी हुई सलाह से संतुष्ट नहीं होते हैं तो इसमें चैनल का कोई दोष नहीं होगा.अगर चैनल के कार्यक्रम के माध्यम से आप अपनी किताब की बिक्री करवाते हैं, तो उकी बिक्री का आधा हिस्सा चैनल को जाएगा. आपके कंटेंट की जिम्मेदारी आपकी खुद की होगी. कार्यक्रम के दौरान हो रहे विज्ञापन से हुई आमदनी चैनल वालों की होगी. कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के दौरान कार्यक्रम के सेट को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए. कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के बाद उसकी एडिटिंग की जिम्मेदारी चैनल वालों की होगी और एडिटिंग के बाद प्रसारित कार्यक्रम में कितना और क्या दिखाना है, इसकी जिम्मेदारी कार्यक्रम के संचालक की होगी,और संचालक चैनल वालों का ही रहेगा. और भी बहुत है, लेकिन सब कुछ ऐसा ही है. तुम चाहो तो मैं पूरा बता सकता हूँ.

भैरव (हंसकर) : नहीं, मुझे समझ गया. मेरी तरफ से तुम ही पूरा देख पढ़ लेना. मुझे तो ये कानूनी भाषा नहीं समझेगी. मंत्र समझ जायेंगे, लेकिन इन कॉन्ट्रैक्ट की भाषा कभी भी नहीं समझेगी. मुझे ये बताओ कि मुझे करना क्या है ?

केदार : बस आप साइन कर दीजिये.

भैरव : कितने समय तक का कॉन्ट्रैक्ट है ? और पैसे कितने देंगे, ये लिखा है ?

केदार : फिलहाल वो नहीं है इसमें. जब तारीख निर्धारित हो जाएगी,तो वो भी पता चल जाएगा. पहले चैनल वाले लोग यह देखना चाहते हैं, कि उनकी प्रारंभिक शर्तों को आप मंज़ूर करते हो या नहीं.

भैरव : रेखा मुझे पेन दो.

रेखा पेन लाकर भैरव को देती है. भैरव कागजातों पर बिना देखे दस्तखत करता है.

रेखा बेचैन होकर समय देखती है.

रेखा (केदार से) : केदारजी, आप भैरव के अच्छे मित्र हो और सच्चे भी. नहीं तो कोई और इतना जल्दी यह सब नहीं करवाकर देता. लेकिन अब भैरव जी की पूजा का समय हो गया है.

केदार भैरव से दस्तखत किये हुए कागज़ात लेकर अपने बैग में रख देता है.

केदार : महाकाली भी आपकी पूजा का इंतज़ार कर रही है.

भैरव : आज के दिन तो कोई जल्दी नहीं है. अब ये बताओ कि तुम खाने में क्या लोगे ?

रेखा (समय देखते हुए) :बारह बजने को आ गए हैं. मुझे लगता है कि केदारजी को भी अपने पूजा के काम होंगे इस वक़्त. वैसे भी वो खाने में सिर्फ रोटी और एक कटोरी सब्जी पसंद करते हैं.

भैरव (केदार से) : आज रेखा इसीलिए जल्दी में है क्योंकि वोअपनी पेंटिंग की गैलरी खोल रही है. उसी की उपयुक्त जगह देखने के लिए वो जा रही है.

केदार : ये तो अच्छी बात है. अपनी कला का प्रदर्शन करना बहुत अच्छी बात है. मुझे नहीं मालूम था कि आप पेंटिंग भी बनाती हैं.

भैरव : खूबसूरत पेंटिंग बनाती है रेखा. इसकी बनाई हुई पेंटिंग में लोगों के हाव-भाव देखोगे तो ऐसा लगेगा जैसे जिन्दा लोगों के हाव-भाव हैं.

रेखा मुस्कुराती है.

रेखा : वैसे मेरी गैलरी में पहले मुझे प्रकृति की पेंटिंग्स रखनी हैं.

भैरव (केदार से) : केदार, मेरा दिल चाहता है कि आज तुम मेरे साथ ही खाना खाकर जाओ. आज का दिन मैं पूजा बाद में कर लूँगा.

रेखा (हडबडाकर) : नहीं, नहीं ...

भैरव (आश्चर्य से) : अरे क्यों ?

रेखा (बात सम्हालते हुए) : मैंने सिर्फ एक ही जन का खाना बनाया है. उसके अलावा और कुछ भी नहीं है. एक जन का खाना दो आदमी खायेंगे तो दोनों भूखे रह जायेंगे.

केदार : भैरवजी, आज सुबह पांच बजे से ही घर से निकला हुआ हूँ. और अब बारह के ऊपर बज गया है. मैं भी काफी थक गया हूँ. घर जाकर आराम करने को मन कर रहा है.

रेखा : केदारजी, आपका खाना मेरे ऊपर बकाया है. किसी और दिन पक्का.

केदार : बिलकुल. अच्छी जगह देख आना अपनी गैलरी के लिए. अच्छा मैं चलता हूँ.

केदार चला जाता है. दोनों उसे जाते हुए देखते हैं.

भैरव : इतना बड़ा काम करके आया था केदार आज हमारे लिए. कम से कम उसे प्रेम से बिठाकर आज खाना तो खिला देते थे.

रेखा : मुझे कितनी देर हो गई है. प्रॉपर्टी वाले को बारह और साढ़े बारह के बीच का समय दिया था. उसको बोला है प्रॉपर्टी शहर के बीच में होनी चाहिए.

भैरव : पैसों की चिंता मत करना. अगर अच्छी लगे तो उसका सौदा कर लेना.

रेखा : मेरे पीछे शांति से बैठकर अच्छी भूमि पर कदम रखने के लिए यह मंत्र जरूर पढना मेरे लिए -समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते. विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्व्मेव.

भैरव (मुस्कुराकर रेखा को आश्वस्त करते हुए) : जरूर पढूंगा.

रेखा : मैं चलती हूँ.

भैरव : कब तक आ जाओगी ?

रेखा : कुछ घंटे लग जाएंगे.

रेखा बाहर निकल जाती है. भैरव अन्दर चले जाता है. कुछ पलों के लिए मंच खाली हो जाता है.

कुछ पलों की शांति.

धीरे से नित्या प्रवेश करता है. इधर उधर देखता है. काली माता की मूर्ती को देखता है. भैरव की पुस्तक के पन्ने पलटाता है. थोडा बेचैन हो जाता है. अचानक उसका पैर किसी चीज़ से टकरा जाता है. टकराने से आवाज़ होती है.

भैरव की अन्दर से आवाज़ आती है : कौन है ? कोई है क्या ?

भैरव का प्रवेश.

भैरव : कौन हो तुम ?

नित्या : भैरवजी ?

भैरव : यहाँ मेरे घर के अन्दर क्या कर रहे हो तुम ?

नित्या : मैं नित्या तीतरे. टीवी चैनल की तरफ से. आपकी पत्नी ने नहीं बताया ?

भैरव : क्या नहीं बताया ?

नित्या : माफ़ी चाहता हूँ. मुझे लगा कि आपको पता है मेरे आने के बारे में. मुझे आपसे मुलाक़ात का समय दिया गया था एक बजे का. मैं सिर्फ थोडा ही जल्दी आया हूँ.

भैरव : मुझे समझ में नहीं आ रहा है. मेरी पत्नी से कब तुम्हारी बात हुई ? और थोड़ी देर पहले ही तो मेरा मित्र केदार चैनल वालों के लिए कागज़ात लेकर गया है मुझसे दस्तखत कराकर.

नित्या : मैंने आपके लैंडलाइन पर कॉल किया था. आपकी पत्नी ने कहा था कि एक बजे आप घर पर मिल जाओगे.

भैरव : उसको समझ नहीं आया होगा कि तुम कौन हो और किसलिए आना चाहते हो. उसने ऐसे ही कह दिया होगा कि मैं घर पर रहूँगा एक बजे. बहुत लोग पूजा के लिए अपॉइंटमेंट लेने के लिए फ़ोन करते हैं.

नित्या : टीवी चैनल वालों की तरफ से थोड़ी प्रारम्भिक जानकारी चाहिए थी. आपकी किताब की भी जानकारी चाहिए थी.

भैरव अपनी किताब का नाम सुनकर खुश हो जाता है.

नित्या : अगर आपको कोई तकलीफ है या आपके पास समय नहीं है तो मैं चला जाता हूँ.

भैरव : नहीं, नहीं. ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन अन्दर आने के पहले ज़रा दरवाजे की घंटी तो बजा देते.

नित्या : माफ़ कर दीजिये. घंटी के बदले मैंने दरवाजे की किवाड़ को खटकाया था.

भैरव : एक बार मेरी धर्मपत्नी ने मुझे इतल्ला कर दिया होता तो अच्छा हो गया होता. तुम्हारा चेहरा कुछ देखा देखा सा लगता है.

नित्या (थोडा रूककर) : जब कोई आ नहीं पाता है तो टीवी चैनल वाले कई बार मुझे ही एक्स्ट्रा के रूप में या दर्शकों में बिठा देते हैं. कई बार कैमरा मेरी तरफ आ जाता है. वहीँ देखा होगा आपने मेरे को.

भैरव : तुमको पक्का है हमारी पहले कभी मुलाक़ात नहीं हुई है ?

नित्या : मुझे नहीं लगता है.

भैरव : शायद कभी किसी संगठन की भीड़ में देखा होगा ....

नित्या : नहीं.

भैरव : या फिर रास्ते में आते-जाते देखा होगा.

नित्या : हो सकता है. लेकिन ज्यादातर शायद टीवी पर ही देखा है.

भैरव : ह्म्म्म...

नित्या : शायद मेरे जैसी शकल वाले और भी हैं इस शहर में.

भैरव : जाना पहचाना चेहरा लगता है तुम्हारा.

नित्या : दर्शकों में बैठकर मुझे ताली बजाने के लिए कहा जाता है. थोड़े थोड़े पैसे भी मिल जाते हैं दर्शक बनकर ताली बजाने के.

भैरव : मतलब तुम टीवी चैनल वालों के लिए जानकारी भी इकठ्ठा करते हो और उनके लिए दर्शक भी बनते हो. नायाब मिश्रण है.

नित्या : पेट के लिए सब करना पड़ता है.

भैरव : ठीक है, अब तुम यहाँ आ ही गए हो तो आधा-एक घंटा मैं तुमको दे ही सकता हूँ. किस प्रकार की और कैसे जानकारी चाहते हो तुम ?

नित्या : कोई विशेष प्रकार से नहीं. बस कुछ सवाल-जवाब.

भैरव और नित्या सोफे पर आमने-सामने बैठ जाते हैं.

नित्या : मुझे पूरा विशवास है कि बहुत लोग यह जानना चाहते हैं कि आपको अपनी तांत्रिक शक्ति की जानकारी सबसे पहले कैसे हुई.

भैरव : कोई पच्चीस बरस की उमर होगी मेरी, तब से.

नित्या : क्या यह सही है कि उसके पहले आप गली-मोहल्ले में और कभी कभी किसी कार्यक्रम में मंच पर जादूगर बनकर तमाशा दिखाते थे ?

भैरव थोडा घूरकर नित्या को देखता है.

भैरव : पूरी दुनिया को मेरे बारे में ये बात मालूम है कि पहले मैं जादूगर के रूप में काम करता था.

नित्या : लेकिन टीवी के बहुत से दर्शक ऐसे होंगे जिनको ये पता नहीं होगा.

भैरव : लोगों को लगता है कि जादूगरी का धंधा छल-कपट का धंधा है.

नित्या : छल-कपट का नहीं, लेकिन आँखों का तो धोखा है. मसलन जब आप अपनी सहाइका को मंच पर टेबल पर लिटाकर उसको तलवार से काटते थे, तो वो सचमुच थोड़े ही कट जाती थी.

भैरव (पुरानी याद में खोकर) : हाँ,लचीली बोलता था मैं उसको. बहुत लचीला शरीर था उसका. कभी कभी मैं उसको लिच्ची भी बोलता था.

नित्या : दो हिस्सों में कैसे बंट जाता था उसका शरीर ?

भैरव : जादूगर कभी अपना राज़ नहीं बताता है.

नित्या : फिर जादूगरी से तांत्रिकी में कैसे प्रवेश किया आपने ?

भैरव : एक बार किसी कार्यक्रम के बाद एक महिला मेरे पास आई. महिला बहुत अच्छे घराने की थी. कोई तीस बरस की उमर होगी उसकी उस समय. जबरदस्ती मुझे अपनी आपबीती सुनाने लगी. बड़ी दुखी लग रही थी. चेहरे पर निराशा के भाव थे. मुझसे उसकी दशा देखी नहीं गई.मैंने उसे प्रेम से बिठाया और उसकी निराशा का कारण पूछा. उसने बताया कि उसकी सास उसे बहुत तंग कर रही थी. कोई सोने की अंगूठी उनके घर से खो गई थी. उसकी सास उसकी उसको ताने मार रही थी कि सोने की अंगूठी उस महिला ने अपनी माँ को दे दी है. ताने मार-मारकर उसका जीना हराम कर दिया था.

नित्या की रुचि इस कहानी में बढ़ जाती है.

भैरव : उन दिनों थारगढ़ शहर में एक काली माता का मंदिर हुआ करता था. मैं वहाँ अक्सर आया जाया करता था. मैंने महिला से बात को टालने के लिए कह दिया कि मैं अपनी जादू की शक्ति से अंगूठी के बारे में पता लगाकर उसे अगले दिन बता दूंगा. शाम को मैं जब काली माता के मंदिर गया,तो पूजा करने के बाद बगल में आराधना के लिए बैठ गया. जाने मैं कहाँ खो गया और इतना ध्यान-मग्न हो गया कि कब रात्री हो गई इसका मुझे पता ही नहीं चला. खैर, जब मैं ध्यान-मग्न था, तो मुझे एहसास हुआ कि माता मुझसे कुछ बोल रही है. मूंदी हुई आँखों में मुझे अंगूठी का आकार नज़र आ रहा था. धीरे-धीरे अंगूठी का आकार छोटा होने लगा और उसके आसपास कुछ कपड़ों जैसी चीज़ें दिखाई देने लगी. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ये कपडे किसी संदूक में बंद हों.

नित्या : ये सब आँखें बंद करके दिख रहा था ?

भैरव : हाँ. अगले दिन मैं कार्यक्रम करने उसी जगह पर गया जहां पहले मेरा कार्यक्रम था. मुझे लगा नहीं कि वह महिला आज फिर वापिस आएगी. लेकिन उसकी श्रद्धा और उसका विश्वास देखो ! कार्यक्रम के बाद वो फिर हाज़िर हो गई ! पता नहीं मुझमे उसे कौन-से गुण नज़र आ रहे थे, या कि वह मेरी जादूगरी से इतना ज्यादा प्रभावित थी. उसने मुझे प्रणाम किया और पूछा कि क्या उसकी समस्या का कोई समाधान मुझे नज़र आया है ? मैंने उसे कहा कि क्या उसके घर में कोई ऐसा संदूक है जिसमें कपडे भरे पड़े हों ? घोर आश्चर्य से उसने कहा, 'है !' मैंने कहा कि अंगूठी उसी संदूक में कपड़ों के बीच पड़ी है. उसने आश्चर्य से कहा, 'लेकिन वह संदूक तो मेरी सास का है, हम पति-पत्नी तो अपने कपडे लोहे की अलमारी में रखते हैं !' मैंने उससे कहा, 'फिर तो सोने की अंगूठी सास ने ही अपने संदूक में छिपा कर रखी है. उसे इस बात से आगाह करो.' महिला बेहद संतोष और ख़ुशी के साथ चली गई.

नित्या : फिर क्या हुआ ? उसको अंगूठी उसी संदूक में मिली या नहीं ?

भैरव : कुछ दिनों के पश्चात मेरी मुलाक़ात उस महिला से फिर हुई. वो खुश नज़र आ रही थी. मैंने खैरियत पूछी. उसने मुझे प्रणाम किया और कहा, 'भैरव बाबा, आपके कारण घर में शान्ति हो गई है. मैंने अपने पति से अंगूठी के संदूक में होने की बात कही. मेरे पति ने अपनी माँ से संदूक खुलवाया और कपडे इधर-उधर करके तलाशा तो अंगूठी संदूक के अन्दर से ही बरामद हो गई. अब मेरी सास मुझे कुछ नहीं बोलती है.'

नित्या (अविश्वास से) : ऐसा ?

भैरव : जिंदगी में पहली बार किसी ने मुझे 'भैरव बाबा' करके बुलाया था. यह संबोधन मुझे बहुत ही अच्छा लगा. मुझे लगा कि इस संबोधन को कायम रखना चाहिए.

नित्या घूरती हुई नज़रों से भैरव को देखता ही रह गया.

भैरव : खैर,जिस रात को मैं माता के मंदिर में ध्यान-मग्न हो गया था,उस रात को माता जो मुझसे बोल रही थी, वह कुछ स्पष्ट नहीं था. मुझे लगा कि अगर मैं माता की और स्तुति करूँ, तो माता के शब्द मुझे साफ़ सुनाई आने शुरू हो जाएंगे. उस दिन से मैंने माता को प्रसन्न करने के यत्न करने शुरू कर दिए.

नित्या : ये घटना तो आपके लिए भी आश्चर्यजनक होगी.

भैरव : यह घटना मेरी शुरुआत थी. झांसा देकर जादूगरी का खेल, अब सच्चाई में परिवर्तित हो गया.

नित्या : उस महिला का क्या हुआ ?

भैरव : पता नहीं. कई सालों के बाद मुझे पता चला कि उसके दो बच्चे हो गए हैं और सास की मृत्यु हो गई है.

नित्या : और आपकी शादी को कितना समय हो गया है ?

विषय के बदलने से भैरव सख्ती से नित्या की तरफ देखता है.

भैरव : क्यों ?

नित्या : फोन पर आपकी पत्नी की आवाज बहुत मधुर सुनाई पड़ी. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि कोई पचास बरस के आसपास की महिला का आवाज हो.

भैरव उठ खड़ा होता है.

भैरव : आवाज़ तो उसकी मधुर जरूर है, लेकिन उसे कुछ कुछ चीज़ें भूलने की बीमारी है. और शायद मुझे भी. मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आता हूँ. खाने में कुछ लाऊँ ? मेरे मित्र की तरह यह मत बोलना कि अपनी शक्ति से मैं तुमको यह बताऊँ कि खाने में तुमको क्या पसंद है.

नित्या (हँसते हुए) : बस थोड़े से बिस्कुट ला लीजिये ... अगर हों तो.

भैरव पानी और बिस्कुट लाने अन्दर जाता है.

नित्या अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर पिस्तौल का निरिक्षण करता है. फिर कुछ सोचकर पिस्तौल वापिस अपनी जेब में रख देता है.

भैरव अन्दर से पानी और एक प्लेट में बिस्कुट लेकर आता है.

नित्या : थारगढ़ वाला किस्सा बहुत ही रोचक था. उस महिला के पति ने कभी आकर आपसे बातचीत की ?

भैरव : नहीं. महिला ने शायद अपने पति को कभी मेरे बारे में बताया ही न हो.

नित्या : इस किस्से को सुनकर तो ऐसा लगता है कि अगर मैं कोई गलत काम कर रहा हूँ, या कुछ बुरा करने जा रहा हूँ, तो आपसे बचकर ही रहना चाहिए !

दोनों हँसते हैं. नित्या पानी का गिलास लेकर आधा पानी पी जाता है.

भैरव : मेरे बाप-दादा और मेरे पूर्वज, सब, कुछ न कुछ इसी प्रकार का काम-धंधा करते थे. कोई छोटी मोटी रसायन विद्या पढ़कर कीमियागिरी का धंधा करते थे,कोई ज्योतिषी का,कोई पुजारी थे, कोई ओझा, कोई झाड-फूंक करते थे, कोई अपनी छठी इंद्री से अतीन्द्रिय दृष्टि रखते थे.

नित्या : लोगों को समझ में कम आता है कि कौन असली है कौन धोखेबाज़.

भैरव : तुम मुझे तो धोखेबाज़ नहीं कह रहे हो ?

नित्या : नहीं, नहीं. बिलकुल नहीं. जहां तक मुझे बताया गया है, आप में वाकई कोई शक्ति है. टीवी चैनल वालों ने भी आप का नाम पहले से सुन रखा था. इसीलिए तो मुझे भेजा है. वरना किसी धोखेबाज़ के घर में टीवी चैनल वाले अपने आदमी को क्यों भेजते ?

भैरव : यह कोई मामूली खेल नहीं है.

नित्या : मुझे वापिस उस थारगढ़ वाले किस्से के बारे में बताइये.

भैरव : शायद वह किस्सा तुमको कुछ ज्यादा ही भा गया है.

नित्या : किसी संगठन में या किसी को घर बुलाकर उनको उनके बारे में एक-दो बातें बताना अलग बात है. वो तो, उनकी पीठ पीछे किसी को भेजकर, उनके बारे में पता लगाया जा सकता है, ठीक ?

भैरव नित्या को घूरता है.

नित्या : उनका नाम पता करना, उनके रहने का ठौर-ठिकाना,उनकी दिनचर्या, उनके घर में आना-जाना ... ये सब तो आराम से पता हो जाता है. लेकिन वो थारगढ़ वाला किस्सा ... वो तो एकदम अविश्वसनीय है.

भैरव : ये किस्सा तो मैं पहले भी लोगों को बता चुका हूँ. कोई नयी बात नहीं है.

नित्या : मुझे मालूम है. लेकिन टीवी चैनल पर जो लोग दूसरे तांत्रिकों को बुलाते हैं, उन्होंने कभी ऐसी कोई घटना होते हुए नहीं सुनी है.

भैरव : वो गलत लोग हैं !

नित्या : हो सकता है. थारगढ़ के लोगों में तो यह बात अच्छे से प्रचलित होगी.

भैरव : तुम और भी कुछ पूछना चाहते हो ?

नित्या : बस थोड़े बहुत प्रश्न और हैं.

भैरव : वो किसी और दिन पूछ लेना. अभी मेरी पूजा का समय हो गया है. मुझे पूजा में बैठना है.

भैरव उठकर खड़ा हो जाता है. नित्या भी उठ जाता है.

नित्या : ठीक है.

नित्या बेमन से दरवाजे की तरह बढ़ता है, एक पल के लिए रूककर वापिस भैरव को देखता है, फिर दरवाजे से बाहर निकल जाता है.

मंच पर बत्तियां बंद हो जाती हैं और अँधेरा छा जाता है.

थोड़ी देर बाद धीरे धीरे प्रकाश होता है.

रेखा का किचन के अन्दर से प्रवेश. घडी में सुबह के सात बजे हैं.

भैरव : रेखा सुनो,सुबह के सात बजने को आ रहे हैं. मैं भोलेनाथ के मंदिर में जा रहा हूँ. आधे घंटे बाद वापिस आ जाऊंगा.

रेखा : जी बिलकुल, हमेशा की तरह.

भैरव : हमेशा की तरह.

भैरव चला जाता है.

रेखा मोबाइल निकालकर फ़ोन लगाती है.

रेखा (मोबाइल पर) : कितना दूर हो तुम ?

रेखा (थोडा रूककर, मोबाइल पर) : हाँ, हाँ, बाहर मत खड़े रहो, जल्दी से अन्दर आ जाओ. भैरव भोलेनाथ के मंदिर में गया है. आधे घंटे बाद वापिस आएगा.

रेखा मोबाइल रख देती है.

चंद क्षणों के बाद ... केदार का प्रवेश.

रेखा : केदार ...

केदार : रेखा ...

दोनों गले लग जाते हैं.

रेखा : बस थोडा और सब्र ...

केदार : सब्र करके ही तो जी रहा हूँ.

रेखा : बस अब शायद एक ही दिन की और बात है.

केदार : कल दोपहर को यहाँ से जाते वक़्त तुम्हारे मित्र नित्या को देखा था. बिलकुल समय का पक्का है. ठीक एक बजे यहाँ पहुँच गया था.

रेखा : सिर्फ समय का ही पाबन्द नहीं है,अभी उसको प्रेरणा मिल गई है. जबसे उसको चावला की फैक्ट्री में नौकरी नहीं मिली है, तब से वो व्याकुल हो गया है. अब उसका इरादा और पक्का हो गया है.

केदार : उसको प्रेरणा तो तुमसे भी मिल रही है.

रेखा मुस्कुराती है.

रेखा (मुस्कुराकर) : जहां से भी मिले. काम निकलने से मतलब है.

केदार : लेकिन कल क्या हो गया उसको ? कल ही क्यों नहीं ...

रेखा : पता नहीं कल उसको क्या हो गया. मैं अपनी पेंटिंग की गैलरी की जगह देखने गई थी तो तकरीबन तीन बजे उसका फ़ोन आया था. बोल रहा था कि काम हो नहीं पाया.

केदार : तुम उसको आज फिर कोशिश करने के लिए बोल दो.

रेखा : मुझे उसको कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है. वो खुद ही सब कुछ करने के लिए तैयार है. पता नहीं कल क्या हो गया उसको. शायद भैरव की प्रतिभा के आगे दब गया वो.

केदार : अब दूसरी बार भैरव को शक न हो इसीलिए उसको बोलना कि वापिस टीवी चैनल वालों की तरफ से ही जाए और थारगढ़ वाले किस्से पर और प्रश्न उठाए.

रेखा : ठीक है, अब तुम जाओ. मैं जल्दी से उसको बुलाती हूँ.

केदार : ठीक है.

केदार चले जाता है.

रेखा मोबाइल पर बात करती है.

रेखा (मोबाइल पर) : नित्या, कहाँ हो तुम ?

रेखा (थोडा रूककर, मोबाइल पर) : हाँ तो एकदम फ़टाफ़ट आ जाओ. अभी भैरव के आने में समय है.

रेखा मोबाइल रखती है और नित्या का प्रवेश होता है.

नित्या : रेखा ...

रेखा :नित्या,कल तुम्हारे हौसले को क्या हो गया था ?

नित्या : पता नहीं. बाबाजी को थोडा शक हो गया या मेरा ज्यादा खोट-खोटकर प्रश्न करना उसको अच्छा नहीं लगा. या वाकई उसकी पूजा का समय हो गया था.

रेखा : कल भैरव मुझसे पूछ रहा था कि किसी टीवी चैनल वाले आदमी का लैंडलाइन पर फ़ोन आया था क्या और मैंने उसको एक बजे आने के लिए बोला था क्या. मैंने उसको कह दिया कि आया तो था, पर मुझे लगा जैसे दुसरे लोगों का अपॉइंटमेंट के लिए आता है, वैसे ही होगा, इसीलिए मैंने एक बजे आने को बोल दिया.

नित्या : पूरी रात भर मेरे दिमाग में बातें चलती रहीं. अगर मैं ऐसे ही कमज़ोर पड़ जाऊंगा तो तुम और ये दौलत अपने हाथ में नहीं आएगी. मुझे अपना मन पक्का करना पड़ेगा.

रेखा : तुम आज फिर आ सकते हो. उसको बोलना कि कल के प्रश्न अधूरे रह गए. टीवी चैनल वालों को और जानकारी चाहिए. थारगढ़ वाले किस्से पर भी एक दो प्रश्न और उठाना.

नित्या : ठीक है, आज फिर कोशिश करूंगा. रोज़-रोज़ से उसको शक न हो जाए.

रेखा : टीवी पर आने की बड़ी लालसा है उसको. टीवी से उसकी ख्याति बहुत बढ़ जाएगी. बड़े बड़े तांत्रिकों में उसका नाम आने की गुंजाइश हो जाएगी. इसीलिए वो ज्यादा इनकार नहीं करेगा.

नित्या : उसकी इसी लालच का तो मैं फायदा उठा रहा हूँ.

रेखा : ठीक है, तुम एक बजे आ जाना. मुझे फिर पेंटिंग की जगह देखने जाना पड़ेगा. जगह के दलाल से फिर समय माँगना पड़ेगा. मैं एक बजे से पहले ही निकल जाऊंगी. फिर कल की तरह पांच बजे वापिस. चार-पांच घंटे तो मुझे बाहर रहना ही पड़ेगा.

नित्या : ठीक है. मैं एक बजे आ जाऊंगा.

रेखा : ठीक है. अब तुम जाओ. भैरव भोलेनाथ के मंदिर से वापिस आता ही होगा.

नित्या : ठीक है.

नित्या चले जाता है.

मंच पर बत्तियां बंद हो जाती हैं.

जब मंच पर रौशनी वापिस आती है तो घडी में दोपहर का एक बजने को है.

दरवाजे पर ठकठक होती है. भैरव अन्दर से निकलकर आता है.

भैरव : कौन है ? अन्दर आ जाओ.

नित्या का प्रवेश.

भैरव नित्या को देखता है.

भैरव : तुम ?

नित्या : माफ़ी चाहता हूँ अगर परेशान कर रहा हूँ तो. लेकिन टीवी चैनल वालों की जानकारी अधूरी रह गई है.

भैरव : ऐसी बात नहीं है. आओ बैठो.

नित्या (बैठते हुए) : काफी अच्छा घर है आपका बाहर से. आसपास बहुत जगह खाली है. ऐसे घर बहुत ही कम देखने को मिलते हैं जिनके आसपास इतनी शांति हो और शोरगुल नहीं हो.

भैरव : मुझे ज्यादा शोरगुल पसंद नहीं है.

नित्या : मैं आपकी जगह होता तो रोज़ ऐसे खाली मैदान के चारों तरफ कम से कम एक घंटा चक्कर लगाता, दौड़ता. इससे मेरी सेहत काफी बनी रहती. लेकिन अफ़सोस कि आप ऐसा नहीं कर सकते.

भैरव घूरती हुई मिश्रित नज़रों से नित्या को देखता है.

भैरव : ऐसा क्यों ? मैं क्यों नहीं कर सकता ?

नित्या : आपके ह्रदय के कारण.

भैरव : मेरे ह्रदय को क्या हुआ ?

नित्या : माफ़ करना. मुझे चैनल वालों ने बताया ...

भैरव : ... कि मुझे हार्ट अटैक आ चुका है, यही ना ?

नित्या : जी. लेकिन मुझे पूछने में असमंजस हो रहा था. मुझे लगा कि शायद आप उस बारे में बात नहीं करना चाहते.

भैरव (खिसियानी हंसी हँसते हुए) : यह कोई सामाजिक बीमारी नहीं है. मैंने कभी इस बात को राज़ बनाए नहीं रखा.

नित्या : लेकिन आपके जीवन की गति को इस अटैक ने धीमा कर दिया होगा.

भैरव : बिलकुल नहीं.

नित्या : मेरे एक रिश्तेदार को भी हार्ट अटैक आया था. अब उसकी जीने की शैली पूरी बदल गई है. अब वो बहुत कम चक्कर लगाता है अपने पार्क के. पहले वो अच्छे खासे तरीके से घूमता था.

भैरव : तो फिर मैं तुम्हारे रिश्तेदार से कहीं ज्यादा भाग्यशाली हूँ.

नित्या : जैसा आप कहें.

भैरव (मुंडी हिलाकर सांस छोड़ता है) : तुम बहुत अविश्वासी तरह के आदमी नज़र आते हो.

नित्या : टीवी चैनल पर हर आनेवाली खबर या समाचार को संदेह की दृष्टि से देखने की आदत पड़ गई है. नहीं तो लोग अपने अपने स्वार्थ पूरा करने के लिए कैसे कैसे ऊटपटांग लेकिन एकदम विश्वसनीय समाचार लेकर आ जाते हैं.

भैरव : इसीलिए तुम मेरी हर बात को संदेहात्मक दृष्टि से देख रहे हो.

नित्या : माफ़ कीजिये मैंने इस बात को उठाया. अब मैं इस बात का जिक्र भी नहीं करूंगा.

भैरव (रोष में आकर) : या तो मैं बराबर समझा नहीं पा रहा हूँ, या तुम अच्छे से समझ नहीं पा रहे हो.हार्ट अटैक के बाद आदमी अपाहिज नहीं हो जाता है. मैं बिलकुल तुम्हारी तरह ही सब काम कर सकता हूँ.

नित्या : जी बिलकुल.

भैरव : तुमको मेरी बात पर विशवास नहीं आ रहा लगता है.

नित्या : मैं तो आपसे उमर में बहुत छोटा हूँ और कोई भी काम आपसे कहीं ज्यादा फुर्ती के साथ कर सकता हूँ.

भैरव : तुमको मालूम है कि रोज़ सबेरे जब मैं भोलेनाथ के मंदिर में जाता हूँ तो आते जाते, थोडा दौड़ते हुए, उठक-बैठक करते हुए जाता हूँ.

नित्या : रोज़ सबेरे आप पैदल जाते हैं भोलेनाथ के मंदिर ?

भैरव : बिलकुल. अगर तुम्हारे टीवी चैनल वालों को शक है कि कहीं कार्यक्रम के बीच में ही मुझे कुछ हो न जाए, तो उनको ये दंड-बैठक बता देना जो मैं तुमको करके दिखा रहा हूँ.

भैरव उठकर अच्छे से कुछ दंड-बैठक लगाता है. फिर दाएं हाथ को बाएं पैर से छूने के, और बाएं हाथ को दाएं पैर से छूने के व्यायाम करता है. अपनी पीठ को पीछे की ओर झुकाकर हाथों को ज़मीन पर छूता है. दोनों पैर फैलाकर कमर को दाएं से बाएं घुमाता है. और भी तीन चार प्रकार के व्यायाम करता है.

भैरव : देख लिया, हो गई संतुष्टि ? अब टीवी चैनल वालों को बता देना कि भैरवनाथ शारीरिक रूप से एकदम स्वस्थ है.

नित्या (हँसते हुए) : जी, बिलकुल. मुझे तो पहले ही पता था. जिन लोगों के पास अन्दर की शक्ति होती है, उनका शरीर भी मज़बूत होता है.

भैरव : तुम तो नौजवान आदमी हो. तुम रोज़ कितना समय कसरत करते हो ?

नित्या : थोडा बहुत करता हूँ.

भैरव उठकर काली माता की मूर्ती तक जाता है और एक तौलिया उठा लेता है. तौलिये से वो अपना पसीना पोछता है. फिर तौलिये को वापिस रख देता है और आकर बैठ जाता है.

भैरव : कोई चिंता की बात नहीं है. व्यायाम के बाद तो सबको पसीना आता ही है.

नित्या : जी बिलकुल. और आपकी उमर में तो लोग इतना सा व्यायाम करके हांफने लग जाते हैं. बहुत सारे तो करते ही नहीं हैं. उनके शरीर हिलते ही नहीं हैं.

भैरव : बस एक बात मुझे समझ में नहीं आई. तांत्रिकी के कार्यक्रम के लिए टीवी चैनल वालों को मेरी शारीरिक योग्यता के प्रमाण-पत्र की आवश्यकता क्यों पड़ गई ?

नित्या : मेरे ख्याल से आपकी जीवनी का बखान करते समय जब हार्ट अटैक वाली बात आएगी, तो दर्शक शायद चिंतित हो सकते हैं. और टीवी चैनल वाले भी सोचते होंगे कि कार्यक्रम के बीच में ही अगर आपको तकलीफ हो गई तो क्या होगा. आपको तो पता है कि कार्यक्रम के प्रोडक्शन में कितना पैसा रोज़ का लगता है. अगर किसी कारण की वजह से कार्यक्रम स्थगित हो गया तो बहुत नुक्सान हो जाएगा.

भैरव : खैर,मेरे पेशे में तो रोज़ की चुनौतियां होती हैं. ये चुनौती मेरे लिए उतनी बड़ी नहीं है.

नित्या (हंसकर) : मैंने कोई चुनौती थोड़े ही दी आपको.

भैरव : शायद नहीं. मैं पानी लाता हूँ.

भैरव अन्दर जाता है.

नित्या अपनी जेब से पिस्तौल निकालता है, उसे सहलाता है. थोडा विचार करता है, फिर पिस्तौल को वापिस जेब में रख देता है.

भैरव पानी और बिस्कुट लेकर आता है.

नित्या थोडा पानी पीता है और धीरे धीरे एक बिस्कुट खाते हुए प्रश्न करता है.

नित्या : वो थारगढ़ वाला किस्सा जो आपने मुझे सुनाया था.

भैरव : उसके बारे में क्या ?

नित्या : आपको तो पता है कि टीवी चैनल वाले किस्सों की सच्चाई में कितना विशवास रखते हैं. कल को अगर कोई आदमी कहीं से उठकर आ गया कि थारगढ़ में ऐसा कुछ तो हुआ ही नहीं था, तो टीवी चैनल वालों की इमानदारी पर प्रश्न लग जाता है.

भैरव (व्यंग से हँसते हुए) : टीवी चैनल वालों की ... क्या ? इमानदारी ?!

नित्या : हमारे चैनल के स्टाफ में से किसी ने थारगढ़ से आपके कार्यक्रम, आपके घर का पता, उस महिला का पता आदि बातें जानने की कोशिश की. लेकिन उनको ऐसा कुछ भी नहीं मिला.

भैरव : उनको बोलो कि कौन-से ज़माने की बात ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं वो लोग ? आज से पच्चीस बरस पहले की बातें हैं वो. किस को याद रहेगा ? ज़माना बदल गया, लोग बदल गए, पीढियां बदल गईं.

नित्या : ह्म्म्म... लेकिन एक तर्क ऐसा दे सकते हैं कि इतनी पुरानी बातें तो कोई भी गढ़ सकता है अपने मन से, कहीं की भी. किसको पता किस गाँव, किस शहर में आज से पच्चीस साल पहले क्या घटना घटी थी. वो भी ऐसी घटना जिसका किसी अखबार में कोई जिक्र न हो.

भैरव : लेकिन तुम लोगों ने पता लगाने की कोशिश कैसे की ? किसको कॉल किया ? कौन गया थारगढ़ ? थारगढ़ में कहाँ पर गया ?

नित्या : उनका ये कहना है कि पच्चीस साल पहले थारगढ़ एक छोटा सा गाँव था, और वहाँ ऐसा कोई काली माता का मंदिर नहीं था जैसा आपने बताया है.

भैरव : क्या बकते हैं वो लोग ? इतनी श्रद्धा थी काली माता की वहाँ पर. बस इतना था कि वो गाँव के बीच में नहीं, गाँव से थोडा दूरी पर था. लेकिन था काली माता का ही.

नित्या : उस महिला की अंगूठी वाला किस्सा भी किसी को मालूम नहीं है.

भैरव : आज मेरे पास उस औरत का अता-पता होता तो मैं तुम्हारे को दे देता. लेकिन बाद में वह औरत मुझे मिली ही नहीं. मुझे सिर्फ इतना पता चला कि उसके दो बच्चे हैं और उसकी सास की मृत्यु हो चुकी है.

नित्या : यह जानकारी किसने दी आपको ? और वो बच्चे कहाँ पर हैं ?

भैरव (झल्लाकर) : तुम तो मेरा बारीकी से निरिक्षण कर मेरी परीक्षा ले रहे हो.

नित्या : मैं आपको नीचा नहीं दिखाना चाहता.

भैरव : तुम ऐसे ही ये थारगढ़ वाले प्रश्न पूछ रहे हो या इसके पीछे कोई मकसद है तुम्हारा ?

नित्या : कल को अगर कोई ऊँगली उठाता है ...

भैरव : थारगढ़ का उस महिला से परिचित व्यक्ति ही ऊँगली उठा सकता है.

नित्या : मैं सिर्फ ये देखना चाहता हूँ कि अगर तांत्रिकी के सीधे प्रसारण में मंच के सामने बैठे दर्शकों में से कोई आपसे ऐसा कोई सवाल करता है तो आप किस प्रकार की प्रतिक्रिया करोगे. अगर कैमरा के सामने आपने गुस्से की या चिढ़कर झल्लाने की प्रतिक्रिया में उनका उत्तर दिया, तो जनता को समझ जाता है कि कुछ गड़बड़ है.

भैरव : न मुझे उस महिला के पति के बारे में मालूम है, न उसके घर का ठौर-ठिकाना है. उसके बच्चे शायद उसी गाँव में रहते हों. लेकिन मेरी मुलाक़ात उन बच्चों के साथ कभी नहीं हुई.

नित्या : और कुछ आप बता सकते हैं थारगढ़ के बारे में,जिससे इस किस्से की पुष्टि हो ? ये किस्सा बहुत अहम् है आपकी ज़िन्दगी में क्योंकि यहीं से आपकी तांत्रिकी की शुरुआत हुई है.

भैरव : आज तक मुझे किसी ने इस किस्से का पुष्टिकरण देने के लिए नहीं कहा.

नित्या : टीवी पर आने से आदमी मशहूर हो जाता है. फिर सब लोग उसके अतीत की जानकारी की खोज करने लगते हैं. अगर टीवी चैनल पर हमने झूठे किस्से देने शुरू कर दिए तो चैनल ही बदनाम हो जाएगा. पहले ही जो दो तांत्रिक आए थे उनपर जनता भड़क गई थी.

भैरव (कुछ सोचते हुए) : उस समय काली माता के मंदिर में एक पुजारी हुआ करता था. बूढा था. उसने मुझे देखा था. लेकिन पता नहीं उसको याद भी होगा या नहीं. ये भी पता नहीं कि वो जिंदा भी होगा या नहीं.

नित्या : अब तक तो वो भी शायद मर गया होगा.

भैरव अचानक उठ खड़ा होता है.

भैरव : अब थारगढ़ के बहुत प्रश्न हो गए. मेरी पूजा का भी समय हो गया है. फिर कभी इसको जारी रखेंगे.

नित्या (उठते हुए) : मैंने आपको प्रश्नों से तकलीफ दी तो उसकी माफ़ी चाहता हूँ. मेरा ऐसा मकसद नहीं था.

भैरव : कोई बात नहीं.

नित्या दरवाजे की तरफ जाता है.

भैरव काली माता की मूर्ती की ओर आकर बैठता है.

नित्या पीछे पलटकर कुछ पलों के लिए भैरव को देखता है, फिर दरवाजे से बाहर निकल जाता है.

जैसे जैसे भैरव काली माता की पूजा करता है, मंच पर बत्तियां धीरे धीरे कम होकर बंद हो जाती हैं.

मंच पर रौशनी वापिस आती है. घडी में सबेरे के सात बजने वाले हैं.

भैरव अन्दर से निकलकर आता है और रेखा को आवाज़ लगाता है.

भैरव : रेखा ... रेखा ...

रेखा भीतर से आती है.

रेखा : जी.

भैरव : मैं भोलेनाथ के मंदिर जा रहा हूँ. आधे घंटे तक आऊँगा. या आज थोड़ी देर भी हो सकती है.

रेखा : कुछ काम है ?

भैरव : बस ऐसे ही. पूजा का थोडा सामान जुटाना है.

रेखा : ठीक है.

भैरव चला जाता है.

कुछ पलों तक रेखा दरवाज़े को निहारती रहती है. उसके बाद अपना मोबाइल निकालकर फ़ोन लगाती है.

रेखा (मोबाइल पर) : भैरव मंदिर चला गया. तुम जल्दी से आ जाओ.

रेखा (मोबाइल पर) : हाँ तो अन्दर आ जाओ. वो चला गया.

रेखा फ़ोन बंद करती है.

कुछ ही पलों में केदार का प्रवेश.

रेखा : केदार ...

केदार : रेखा ...

दोनों करीब आ जाते हैं.

रेखा (चिढ़कर) : उस बेवकूफ ने फिर अपना काम नहीं किया.

केदार : क्या कर रहा है वो ? फिर इतने समय तक तुम उसके साथ थी ही क्यों जब वो काम ही नहीं कर रहा है.

रेखा : बेवकूफ को शायद हिम्मत ही नहीं हो रही है.

केदार : देखो ना, तुमको भी उसने कितना बेचैन कर दिया है.

रेखा : मैं चाहती हूँ कि यह सब जल्दी से जल्दी ख़तम हो जाए.

केदार दीवान पर बैठ जाता है. रेखा उसके पास आकर बैठ जाती है.

रेखा : तुमको पता है इस वक़्त मुझे किस चीज़ की सबसे ज्यादा जरूरत है ?

केदार : बताओ.

रेखा : मुझे कहीं घूमने के लिए किसी अच्छी जगह पर जाना है.

केदार : इससे तुम्हारी चिंता भी ख़तम हो जाएगी. लेकिन रेखा, अभी तुम ऐसा बिलकुल नहीं कर सकती.

रेखा : मुझे अकेले नहीं जाना है केदार, मैं तुम्हारे साथ जाना चाहती हूँ.

केदार : इसका कोई उपाय हम जरूर निकाल लेंगे. किसी अच्छी सी रोमांचक जगह पर जाएंगे.

रेखा : जहां मैं थोडा ज्यादा समय गुजारकर अपना मन बहला सकूं. उस बेवकूफ नित्या ने तो मेरे माथे पर तनाव ही ला दिया है.

केदार : वो तो दिख ही रहा है.

रेखा : सुना है बालावर की घाटियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं, बहुत रोमांचक हैं. बहुत लोग जाते हैं वहाँ.

केदार : सुना तो मैंने भी है. हालांकि आज तक कभी गया नहीं हूँ.

रेखा : या फिर नानगांव की पहाड़ियों पर चल सकते हैं. सुना है बहुत शीतल और मनमोहक स्थान है वो.

केदार : बिलकुल चल सकते हैं. और चलेंगे भी.

रेखा : यहाँ अकेले इस खाली घर में माथा फोड़ने से तो कहीं अच्छा रहेगा.

केदार : हम-तुम यहाँ से घूमने के लिए चले गए तो नित्या को शक न हो जाए.

रेखा : नहीं होगा. उसको मैंने पहले ही बोलकर रखा है कि कम से कम सालभर उसको और मेरे को बिलकुल भी एक साथ दिखाई नहीं देना है. उस सालभर में उसको मुझे कॉल भी नहीं करना है नहीं तो लोगों को शक हो जाएगा. क्योंकि हमारी बस्ती के लोग हैं जिनको पता है कि शादी से पहले उसके साथ मेरा चक्कर चल रहा था.

केदार : और सालभर के बाद ?

रेखा (मुस्कुराते हुए) : सालभर के बाद किसको पता क्या हो जाए.

दोनों मुस्कुराते हुए गले लग जाते हैं.

केदार : लेकिन घूमना फिरना सब कुछ दिनों का शोक मनाने के बाद.

रेखा (सर हिलाकर हामी भरती है) : तेरह दिन का शोक. फिर सब लोग चले जाएंगे. दो हफ़्तों में सब खाली हो जाएगा. उसके दो और हफ़्तों के बाद धीरे धीरे सब सामान्य हो जाएगा. मतलब एक महीने के बाद निकल सकते हैं.

केदार : आज तुम उस बेवकूफ नित्या को और थोड़ी प्रेरणा दो. चाहे कुछ भी करना पड़े.

रेखा (मुस्कुराते हुए) : अपने प्रेम की खातिर.

केदार : अगर बाद में कोई तुमसे नित्या के बारे में पूछे तो ...

रेखा : मैंने सब सोच रखा है. मैं बोल दूँगी कि वो बार बार मुझे कॉल करके परेशान करता था. धमकी देता था कि हमारे पुराने किस्से के बारे में वो भैरव को बता देगा.

केदार : पुलिसवाले बोलेंगे कि हमको क्यों नहीं बताया ?

रेखा : मैं बोल दूँगी कि मैं बेहद परेशानी में थी. मैं भी उसको कॉल करते रहती थी कि उस सिरफिरे को थोडा काबू में रख सकूं, नहीं तो वो सनकी गुस्से में आकर जाने क्या कर बैठे.

केदार : पुलिसवालों को और दूसरों को शक की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.

रेखा : मैं बोल दूँगी कि इस घर के चक्कर काटता रहता था वो. मेरे पीठ पीछे आकर उसने ये सब जलन और ईर्ष्या में कर दिया.

केदार : तुमको ये भी बताना पड़ेगा कि वो एक खतरनाक किस्म का आदमी है. पहले वो लूटमारी का धंधा करता था.

रेखा : वो तो पुलिसवालों को पहले ही पता होगा. पहले भी पुलीस उसके पीछे लग चुकी है और उसको शहर छोड़कर भागना पड़ा था. जब मामला ठंडा हो गया तो वो वापिस आ गया.

केदार : लेकिन ये सब तुमको पुलीस को अकेले में बताना पड़ेगा, उसके सामने नहीं. उसको बिलकुल खबर नहीं होनी चाहिए कि तुम पुलीस को ऐसा बयान दे रही हो कि वो तुमको धमकी देकर परेशान कर रहा था.

रेखा : मैं पुलिसवालों को बोल दूँगी कि मुझे नित्या से और उसके साथियों से डरलगता है कि कहीं वो मेरा कुछ कर न दें. इसीलिए मेरे बयान को उजागर न करें.

केदार : अगर उनको नित्या की गुंडागर्दी क बारे में पता है, तो पुलीस तुमसे सहानूभूति रखेगी. ऐसे केस में महिला पुलीस आती है जो तुम्हारी भरपूर सहायता करेगी.

रेखा : ऐसा तो कोई नहीं पूछेगा शायद कि मैंने नित्या के बारे में भैरव को क्यों नहीं बता दिया.

केदार : तुमको ये जाहिर करना है कि तुम्हारा शादी के पहले उसके साथ अफ्फैर था, शादी के बाद नहीं.

रेखा : और अपने पति को शादी के पहले का किस्सा बताने की कोई तुक नहीं है.

केदार : बिलकुल.तुम्हारी अपनी सुरक्षा के लिए ऐसा जरूरी था.

रेखा : मैं चाय बनाकर लाऊं तुम्हारे लिए ?

केदार : नहीं, उसको पिछली बार दो कप देखकर संदेह हो गया था ना ?

रेखा : उससे कुछ फरक नहीं पड़ता है. मैं चाय के कप धोकर रख दूँगी. वैसे भी आज भैरव को डेढ़-दो घंटे लग जाएंगे. पूजा का सामान जुटाने जाना था उसको.

केदार : अब वो संगठन के किसी सदस्य की पूजा करवाने में जुट रहा होगा.

रेखा : एक-एक करके संगठन वालों से भरपूर पैसा लेगा. संगठन वाले उससे बहुत प्रभावित हो गए लगते हैं.

केदार : तुम आज नित्या को बुलाकर उसको बोलो कि अगर उसने ज्यादा समय लगाया तो भैरव को शकहो सकता है और वो टीवी चैनल वालों को कॉल करके पता लगाने की कोशिश कर सकता है.

रेखा : हाँ, ये मैं कर सकती हूँ.

केदार : वैसे तो टीवी चैनल में मेरा जो पहचान का है, जो तांत्रिक वाले कार्यक्रम का संचालन करता है, उसको मैंने बोल दिया है कि मैं अपनी तरफ से भी किसी को भेजकर भैरव की थोड़ी जानकारी उसको लाकर दूंगा जिससे उसको भैरव की कहानी बुनने में आसानी हो.

रेखा : ह्म्म्म... फिर तो अगर भैरव टीवी चैनल वालों को कॉल करके पता लगाने की कोशिश भी करता है तो भी चैनल वाले समझ ही जाएंगे कि तुमने ही किसी को भेजा होगा भैरव की खबर लेने के लिए.

केदार : तो फिर मैं चलूँ ?

रेखा : नहीं, आज तो मेरा मन तुम्हारे साथ चाय पीने का बन गया है. मैं पहले नित्या को कॉल करके देखती हूँ.

रेखा मोबाइल निकालकर नित्या को फोन लगाती है.

रेखा (मोबाइल पर) : नित्या, कहाँ पर हो तुम ?

रेखा (मोबाइल पर) : नहीं, बस भैरव भोलेनाथ के मंदिर गया था इसीलिए.

रेखा (मोबाइल पर) : ठीक है ना, कोई बात नहीं. उसको ज्यादा चोट आई है क्या ?

रेखा (मोबाइल पर) : ठीक है, उसकी पट्टियां कर दो. लेकिन एक बात का ध्यान रखना. अगर तुमने ज्यादा समय लगाया तो भैरव को शक हो सकता है और वो टीवी चैनल वालों को कॉल करके पता लगाने की कोशिश कर सकता है. और अगर उसको पता लग गया, तो वो तुम्हारे पीछे भूत बनकर लग जाएगा और तुम्हारे को छोड़ेगा नहीं. मैं अच्छी तरह से जानती हूँ उसको.

रेखा (मोबाइल पर) : हाँ, और क्या. बिलकुल ऐसा कर सकता है वो. तुम इतनी ज्यादा बार उससे बार-बार मिलने आते रहोगे तो उसको शक नहीं हो जाएगा कि टीवी चैनल वाले रोज़-रोज़ तुमको क्यों उसके घर भेज रहे हैं ?

रेखा (मोबाइल पर) : उसकी पट्टियां कर लो. उसमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन आज फिर एक बजे आखिरी बार आ जाओ.

रेखा (मोबाइल पर) : मैंने पहले इसीलिए कभी जोर नहीं दिया है क्योंकि अब मुझे भी डर लग रहा है. अगर भैरव को पता चल गया कि इस प्रकार का कुछ हम करने की कोशिश कर रहे हैं, तो मेरी जान ही ले लेगा वो. फिर पता नहीं मेरे साथ क्या करेगा वो.

रेखा (मोबाइल पर) : हाँ, इसीलिए तो मुझे अब ज्यादा ही डर लग रहा है.

रेखा (मोबाइल पर) : ठीक है.

रेखा मोबाइल रख देती है.

रेखा (केदार से) : उसके किसी दोस्त को मारपीट में चोट लगी है. उसी की मरहमपट्टी कर रहा है वो.

केदार : आज आने के बारे में क्या बोला वो ?

रेखा : हाँ, आज एक बजे आने का पूरा इरादा है उसका.

केदार : बहुत अच्छी बात है. अब तुम भले चाय बना लो.

रेखा चाय बनाने अन्दर जाती है.

मंच पर बत्तियां धीरे धीरे बंद हो जाती हैं.

फिर बत्तियां शुरू होती हैं. घडी में दोपहर का एक बज रहा है.

दरवाजा खटकता है. भैरव अन्दर से कमरे में आता है.

नित्या का प्रवेश.

भैरव : मुझे लगा ही था कि तुम आज जरूर आओगे.

नित्या (मुस्कुराकर) : जी मैं ज्यादा तो आपको परेशान नहीं कर रहा हूँ ?

भैरव : बैठो.

भैरव, काली माता की मूर्ती की ओर इशारा करता है जहां पूजा का कुछ सामान पड़ा है.

भैरव : मुझे किसी के लिए पूजा करनी है. देखो पूजा के लिए मैंने क्या क्या सामान जुटा लाया है. कुंकुम है, लाल फूल हैं, सुगंधि है, गुडहल के फूल हैं, सिन्दूर है, और कनेर का पुष्प भी. ये सब काली माता को अर्पित करना है.कोई ढोंगी बाबा होता तो ये सब नहीं करता. सिर्फ बोल देता कि मैंने तुम्हारे नाम से पूजा कर दी है.

नित्या : लेकिन कुछ कुछ बाबा ऐसे भी होते हैं जिनको काली माता की पूजा करके घमंड आ जाता है कि वो कुछ भी कर सकते हैं, किसी का कुछ भी भला या बुरा कर सकते हैं. उनको लगता है कि उन्होंने काली माता की बहुत पूजा कर ली इसीलिए काली माता ने उनको वरदान दे दिया है और ऐसे बाबाओं को घमंड आ जाता है.

भैरव : किसी भी तांत्रिक के लिए तपस्या और भक्ति ही काफी नहीं होता है, उसके साथ साथ उसमें त्याग और अहंकारहीनता की भावना भी होनी चाहिए. अगर उसमें ऐसा नहीं है तो किसी दिन उसको मूंह की खानी पड़ेगी जैसा तुम्हारे टीवी चैनल पर निर्मल बाबा और स्वामी चिन्मयानन्द को खानी पड़ी.

नित्या : कौन कौन से लोग आपके पास आते हैं ? जाहिर है, ऐसे ही लोग श्रोता बनकर हमारे टीवी चैनल के कार्यक्रम में मौजूद होंगे.

भैरव : कर्ज लिया हुआ आदमी, बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति, किसी पर अचानक नुकसानों का ढेर लग जाए,लम्बा अरसा गुजर जाने के बावजूद भी समस्या का हल न खोज पाने लोग ... ऐसी स्थिति में कोई भी यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि कहीं इन सबके पीछे कोई और कारण तो नहीं है.

नित्या : किसी गलत आत्मा का साया भी पीछे पड़ सकता है ?

भैरव : सिर्फ बुरी आत्मा का साया ही नहीं, कोई भी किसी के खिलाफ जादू-टोना भी कर सकता है.

नित्या : और भी कोई दोष हो सकता है ?

भैरव : बहुत प्रकार के दोष हो सकते हैं. कभी कभी तो पूरे परिवार को शाप लग जाता है. कोई कोई जादू-टोने ऐसे होते हैं, जो सौ-सौ सालों तक चलते हैं.

नित्या : क्या कोई ऐसा जादू-टोना भी होता है कि आदमी गुंडागर्दी करने पर मजबूर हो जाए ?

भैरव : अगर उस व्यक्ति के बाप पर भी किसी ने श्मशानिक प्रयोग कर दिया हो तो उसके बेटे भी गलत रास्ते पर चलकर गुंडागर्दी करने पर उतर आते हैं. उनको यह समझता ही नहीं है कि उनके बाप के ऊपर हो रहे प्रकोपों के कारण वो गुंडागर्दी कर रहे हैं.

नित्या : ऐसे लोगों को क्या करना चाहिए ?

भैरव : उनको मूल मन्त्र का यथाशक्ति जप करना चाहिए. यही सब तो मैं टीवी चैनल पर बताने वाला हूँ.

नित्या : फिर तो लोग बहुत उत्साहित हो जाएंगे.

भैरव : लोग सिर्फ यह समझते हैं कि घटनाएं महज घट रही हैं. उनको यह पता नहीं होता है कि घटनाओं के घटने के पीछे क्या क्या चल रहा है.

नित्या : लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि घटनाएं महज घट रही हों,और टोने-टोटके वालों को यह अवसर मिल गया हो घटनाओं के पीछे का कारण लेकर अपनी गुरबज़र करने का.

भैरव : ऐसा नहीं है, क्योंकि सिर्फ टोने-टोटके वाले ही पूजा करने में सक्षम नहीं हैं. बहुत से लोगों में ये काबिलियत होती है, सिर्फ उनको बराबर तरीका नहीं पता होता है. वो खुद अपनी घटनाओं के पीछे का राज़ जान सकने में कामयाब हो सकते हैं.

नित्या : शायद मुझमें भी यह काबिलियत है.

भैरव : शायद.

नित्या : मतलब अगर मैं थोडा जोर लगाऊँ, तो मैं भी लोगों की समस्यायों का राज़ जान सकता हूँ.

भैरव : हो सकता है.

नित्या : मैं अभी ही थोड़ी कोशिश करके देखूं ?

भैरव : अभी ? यहीं पर ?

नित्या : जी.

भैरव (अनमने से भाव से) : ठीक है. कैसे करोगे ? बहुत ध्यान लगाना पड़ता है.

नित्या दोनों हाथों से अपना सर पकड़कर ध्यान लगाने की कोशिश करता है.

नित्या (थोड़ी देर के बाद) : मुझे तो कुछ नहीं सूझ रहा है. शायद आप लोगों को ग्राहकों की छोटी छोटी बात से उनकी समस्यायों का, उनके रहन-सहन का, उनके तौर-तरीके का, सुराग मिल जाता है.

भैरव : पंडित लोग ऐसा करते होंगे.

नित्या : मुझे पानी मिल सकता है ?

भैरव : अभी लेकर आता हूँ.

नित्या चहलकदमी करता है. अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर उसे देखता है, फिर जेब के अन्दर रख देता है. काली माता की मूर्ती के पास जाकर पूजा का समान देखता है. फूल उठाता है, निरिक्षण करता है कि फूल असली हैं या नकली. उनकी सुगंध सूंघता है.फूल हाथ में रखकर ही माता को प्रणाम करता है, मानों क्षमा-याचना कर रहा हो. फिर फूलों को नीचे रख देता है और जाकर बैठ जाता है.

भैरव पानी और बिस्कुट लेकर आता है और नित्या के सामने रख देता है.

नित्या कुछ सोचते सोचते पानी पीता है.

नित्या : अभी आप जब अन्दर गए थे पानी लाने के लिए ...

भैरव : हाँ ...

नित्या : तो उस समय मैंने सर को जोर लगाकर अपने अन्दर की शक्ति को जगाने की कोशिश की.

भैरव (कपटता से मुस्कुराकर कर) : अच्छा.

नित्या : सही में.

भैरव (उसी तरह मुस्कुराकर) : क्या पता चला तुमको ?

नित्या (पानी का ग्लास नीचे रखकर) : यही कि आपकी बीवी बहुत जवान है, बहुत खूबसूरत है.

भैरव के चेहरे की मुस्कान गायब हो जाती है.

नित्या : और अपनी खुद की पेंटिंग की गैलरी खोलना चाहती है.

भैरव कुछ देर शांत रहता है.

नित्या : और उसमें सबसे पहले प्रकृति की पेंटिंग रखना चाहती है.

भैरव (कुछ सोचकर) : यह बात तुमको किसी ने तो बताई होगी. किस ने बताई ? (कुछ ध्यान करके) हाँ, केदार ने ही बताई होगी, और क्या.

नित्या : केदार ? केदार कौन है ?

भैरव : तुम केदार को नहीं जानते ?

नित्या : नहीं. मुझे नहीं पता केदार कौन है.

भैरव अचानक उठ खड़ा होता है. उसके चेहरे पर रोष है.

भैरव : मुझे लगा केदार ने ही टीवी चैनल वालों को बोलकर तुम्हें मेरे घर भेजा है.

नित्या : केदार ने टीवी चैनल वालों को बोला है ?

भैरव : इसीलिए तो मैं तुमको इतना भाव दे रहा हूँ. इतनी बार आने दे रहा हूँ घर पर.

नित्या : मुझे तो टीवी चैनल वाले भेजते हैं. उनका केदार से क्या सम्बन्ध है, यह मुझे नहीं मालूम.

भैरव (शंका से) : टीवी चैनल वालों में से और किस किस को जानते हो तुम ?

नित्या : जिस प्रकार से मैंने अपनी अन्दर की शक्ति लगाकर ये बातें पता की, उसी प्रकार से आप भी अपनी अन्दर की शक्ति लगाकर पता कर सकते हो.

भैरव खामोशी से नित्या को देखता है.

नित्या : मेरी अन्दर की शक्ति से मुझे एक बात और नज़र आती है.

भैरव : वो कौन सी बात है ?

नित्या : आपकी बीवी के बारे में है.

भैरव : मेरे बीवी के बारे में कौन-सी बात है ?

नित्या : उसका नाम रेखा है.

भैरव : वो तो तुमने कहीं से भी पता कर लिया होगा. टीवी चैनल वालों ने ही बता दिया होगा.

नित्या : आपकी मुलाक़ात उससे अस्पताल में हुई थी.

भैरव चढ़ी हुई त्योरियों से नित्या को देखता है.

भैरव : यह जानकारी तो मैं खुद टीवी पर देनेवाला था.

नित्या : और एक बात मुझे अपनी शक्ति से दिखती है.

भैरव : अच्छा ? कौन-सी ?

नित्या : यही कि आपकी जवान खूबसूरत बीवी की पीठ पर एक तिल का काला दाग है.

भैरव गुस्से से आगबबूला होकर नित्या के करीब आ जाता है.

भैरव : क्या बकते हो ?

नित्या : अब आप ही बताओ कि यह बात तो आपने किसी नहीं बताई ?

भैरव (गुस्से से) : यह बात तुमको कैसे मालूम पड़ी ?

नित्या : अभी तो आपको बताया कि अन्दर की शक्ति से मालूम हुआ है.

भैरव (गुस्से से) : तेरे अन्दर कौन-सी शक्ति है, यह बात मुझे अच्छे से मालूम है. बता तेरेको यह बात कैसे पता चली ?

नित्या (मुस्कुराकर) : आप वाकई चाहते हो कि मैं आपको यह बता दूं कि यह बात मुझे कैसे पता चली ?

भैरव : हाँ, अभी बता मुझे.

नित्या (उठकर) : क्योंकि मैंने अपनी आँखों से उस तिल को देखा है.

भैरव (बेहद गुस्से से) : झूठ बोल रहा है तू.

नित्या : एक नहीं, कई बार देखा है.

भैरव आँखें बंद करके अपने गुस्से पर काबू करने की कोशिश करता है.

भैरव : सही सही बताओ, कौन हो तुम ?

नित्या : आपकी पत्नी का प्रेमी हूँ मैं.

भैरव सुनकर थकी हुई मुद्रा में नीचे बैठ जाता है.

भैरव : यह मुमकिन नहीं है. मैं रेखा को अच्छे से जानता हूँ.

नित्या : मैं भी रेखा को अच्छे से जानता हूँ. आपसे ज्यादा अच्छे से.

भैरव : मनगढ़ंत कहानी गढ़ रहे हो तुम.

नित्या : आप से ज्यादा वो मुझसे प्यार करती है.

भैरव : ऐसा नहीं हो सकता.

नित्या : उसी ने मुझसे ऐसा कहा है.

भैरव अपनी छाती पर हाथ रख देता है.

भैरव : रेखा ने मेरे साथ धोखा किया है ?

नित्या (खूंखार रूप धारण कर) : अपने अन्दर की शक्ति से एक बात और मैं आपको बता सकता हूँ.

भैरव उसके बदलते रूप को देखता है.

नित्या : वो ये है कि इस समय इस घर में एक पिस्तौल मौजूद है.

भैरव पिस्तौल का नाम सुनते ही आतंकित हो जाता है.

भैरव (डर से) : पिस्तौल ?

नित्या : हाँ.

नित्या अपनी जेब से धीरे से पिस्तौल निकालता है.

नित्या : बहुत बड़ा तांत्रिक बनने का दावा करता है तू. संगठन के लोगों को उनके बोलने के पहले ही उनकी समस्यायों के बारे में बता दिया था तूने. सबके मन की बात और उनकी तकलीफों की जानकारी हो जाती है तेरेको. अगर तू इतना बड़ा तांत्रिक है तो मेरे अन्दर की बात तेरेको कैसे नहीं पता चली ? इस पिस्तौल के बारे में तेरेको कैसे नहीं पता चला ?

भैरव (हकलाते हुए) : वो ...

नित्या : इतने दिन तक मुझे लगता रहा कि हो सकता है तेरे पास वाकई कोई शक्ति है. लेकिन तेरेको अभी तक समझ में नहीं आया कि मैं तेरा खून करनेवाला हूँ.

भैरव (अपनी छाती पर हाथ रखकर, डरते हुए) : देख नित्या, आराम से ... जल्दबाजी में कुछ मत कर ...

नित्या : जल्दबाजी में कुछ नहीं है. एक साल से इंतज़ार कर रहा हूँ. तेरे को मालूम नहीं है कितने सब्र के बाद ये घडी आई है.

भैरव : एक साल से ?

नित्या : बहुत पैसा जमा करके रखा है तूने. पता नहीं कहाँ कहाँ दबा कर रखा है. सबसे कैश पैसा लेता है तू. जाहिर है कि सबकी नज़र तेरे पैसे पर है.

भैरव : ऐसा जरूरी नहीं है.

नित्या : जिसके पास इतना कैश पैसा हो, उसके पीछे तो चोर-उचक्के पड़ ही जाते हैं.

भैरव : नहीं, जरूरी नहीं है.

नित्या : जरूरी हो या ना हो, लेकिन लोगों को लगेगा कि आज तेरी तिजोरी लूटने के लिए तेरे घर में चोर घुस आए. और चोरी करनेवाले चोरों के साथ तेरी झड़प हुई. इस मुठभेड़ में चोरों ने तेरेको मार डाला.

भैरव (नीचे बैठे ही, छाती पर हाथ रखे हुए) : ऐसा कोई जरूरी नहीं है. मैं क्यों चोरों के साथ लडूंगा ? जो उनको लेकर जाना है, वो लेकर जाएं. मेरे पास कौन-सी कमी है ? तेरे को क्या चाहिए ? जो तेरे को चाहिए वो लेकर जा.

नित्या (गुस्से से) : बुड्ढ़े ! तेरे को लगता है कि मेरे को तेरी दो टके की घर में पड़ी हुई कैश चाहिए ?

भैरव (काली माता की मूर्ती की ओर इशारा करके) : ये मूर्ती अन्दर से सोने की बनी है. इसको ले जा. मैं दूसरी ले लूँगा.

नित्या (उपहास से) : वाह बुड्ढ़े ! थोड़ी-सी जान पे बन आई तो तू उसी माँ की मूर्ती को, उसकी आन जो बेचने पर एकदम तैयार हो गया, जिसके बल पर तेरी जीवनी चलती है ?

भैरव : वो तो सिर्फ मूर्ती है. भक्ति में दम होता है. मूर्ती तो सिर्फ उपासना का एक प्रतीक होती है. सब पंडितों को, पूजा करनेवालों को ये बात पता है.

नित्या (झल्लाकर) : किसी को नहीं मालूम है ये बात ! कोई अपनी मूर्ती की इतनी जल्दी कुर्बानी देने को राज़ी नहीं हो जाता है, जितनी जल्दी तू हो गया. मूर्ती को अपने सीने से चिपकाए रखते हैं लोग कि जान चली जाए, लेकिन इस मूर्ती पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए.

भैरव (मूर्ती की तरफ इशारा करके) : सिर्फ मूर्ती है. कोई असली की माँ थोड़े ही है.

नित्या : बुड्ढ़े ! ये तो सोच कि इतनी बड़ी मूर्ती मैं लेकर कैसे जाऊँगा यहाँ से ? और बाहर के लोग देखेंगे नहीं कि तांत्रिक की इतनी बड़ी मूर्ती कौन लेकर जा रहा है ? सबकी नज़रों में आ जाऊँगा मैं. यही चाहता है ना तू ?

भैरव : तो कुछ और ले जाओ. अभी घर में ही मेरे पास थोड़े सोने के आभूषण पड़े हैं.

नित्या : वैसे तो मेरा काम-धंधा ही यही है. सबके यहाँ लूट-पाट का. लेकिन मेरी बुद्धि अभी मर नहीं गई है. आज तेरे घर से सिर्फ तेरी जान लेने के लिए आया हूँ मैं. तेरे घर से कुछ लेकर जाऊं, और कल को पुलीस की या किसी की निगाहों में वो चीज़ आ गई और उनको पता चल गया कि यह तांत्रिक भैरव की है, तो उनको समझ जाएगा कि मैं ही तेरे घर पर था जब तेरी मौत हुई.

नित्या पिस्तौल लेकर उसका मोहरा भैरव की छाती की तरफ करता है.

भैरव : मत कर ये काम. गलत कर रहा है तू.

नित्या : और तूने क्या किया बुड्ढ़े ! इक्कीस साल की लड़की के साथ शादी !

भैरव : शादी रेखा की मर्ज़ी से हुई.

नित्या : क्योंकि उनके पास खाने के लिए एक दाना भी नहीं बचा था. और कर्जा लेने वाले सब सर पर मंडरा रहे थे.

भैरव : आज कितना खुश है रेखा, उसके बारे में सोच.

नित्या : वो तेरे साथ नहीं, मेरे साथ खुश रहेगी.

नित्या की नज़र पानी के ग्लास और बिस्कुट की प्लेट पर पड़ती है.

नित्या : ये ग्लास और प्लेट हटा देनी पड़ेगी. नहीं तो लोगों को समझ जाएगा कि कोई पहचान वाला था जिसकी आवभगत करने के बाद ये काण्ड हुआ.

नित्या पानी के ग्लास और बिस्कुट की प्लेट उठाता है और किचन की तरफ ले जाता है.

नित्या : बिलकुल हिलना मत. वहीँ बैठे रहना.

नित्या ग्लास और प्लेट अन्दर रखकर आता है. भैरव बुत बनकर छाती पर हाथ रखकर वहीँ बैठा है.

भैरव : अगर तुमको पैसा नहीं, तो मैं कुछ और भी दे सकता हूँ तुमको.

नित्या : जैसे ?

भैरव : कोई ज़मीन तुम्हारे नाम कर सकता हूँ.

नित्या : बात इसकी नहीं है कि मुझे क्या चाहिए. बात इसकी है कि रेखा को क्या चाहिए.

भैरव : मुझे नहीं लगता है कि रेखा को कोई खून-खराबा चाहिए.

नित्या (हंसकर ) : बुड्ढ़े ! अभी तक तेरे को शायद समझा ही नहीं है ! उसी ने मेरे को भेजा है तेरा खून करने के लिए !

यह सुनते ही भैरव जोर से अपनी छाती पकड़कर लेटने की मुद्रा में नीचे लुढ़क जाता है.

भैरव : तुम यह सब करके बचकर नहीं जा सकते. सबको पता चल जाएगा.

नित्या : मुझे नहीं लगता है कि किसी को भी पता चलेगा. चोरियां तो हर किसी के घर रोज़ ही होती रहती हैं. बहुत बार चोरी करने वाले उन लोगों को मार भी देते हैं जो लोग चोरी करनेवालों का विरोध करते हैं.

भैरव : लोगों को पता चल जाएगा कि मेरे घर कोई चोर नहीं घुसा था. पहचान वाले का ही काम है.

नित्या : तुम्हारा दरवाजा तो हमेशा ही खुला रहता है. बहुत कम बार बंद रहता है. आसपास के सब प्लाट भी खाली पड़े हैं.

नित्या भैरव के कंधे पर हाथ रखकर उसका सर ऊपर उठाता है.

नित्या : अब ज्यादा ईंघाने की जरूरत नहीं है.

नित्या भैरव की छाती के पास पिस्तौल रख देता है.

भैरव के सर पर पसीना आ जाता है.

भैरव (रूकती हुई साँसों से, छाती पकड़कर, घबराकर) : ऐसा मत कर ...

अचानक भैरव नित्या पर झपटकर, उसकी पिस्तौल और उसका हाथ पकड़ लेता है. नित्या हाथ छुडाने की कोशिश करता है. भैरव जमकर पकड़ लेता है. नित्या जोर से पीछे पलटकर भैरव की पकड़ को छुडाना चाहता है. लेकिन भैरव मजबूती से पकड़ बनाए रखता है. नित्या अपना हाथ ऊपर की ओर उठाता है ताकि अपने कद की वजह से उसके ऊंचे हाथों तक भैरव पहुँच न सके. लेकिन भैरव उसका हाथ ऊपर तक जाने ही नहीं देता है. भैरव झटके के साथ नित्या का हाथ नीचे की ओर ले आता है. भैरव अपने दोनों हाथों से नित्या के पिस्तौल वाले हाथ पर मज़बूत पकड़ बनाए रखता है. नित्या का पिस्तौल वाला दायाँहाथ भैरव की गिरफ्त में कैद हो जाता है. नित्या अपने बाएं हाथ से पीछे से भैरव की कमर पकड़ लेता है. भैरव जोर से झटका देकर नित्या को अपने पीछे कर देता है और पिस्तौल को नीचे झुककर अपने टांगों के बीच ले जाने का प्रयत्न करता है. नित्या भैरव की कमर छोड़कर भैरव को घुमाकर उसके सामने आ जाता है. नित्या भैरव को जोर से बल से सोफा पर लिटाने की कोशिश करता है. लेकिन खुद पहले सोफा पर गिर जाता है. भैरव पिस्तौल को झपटने के लिए नित्या पर चढकर दोनों हाथों से नित्या के पिस्तौल वाले हाथ को तीन-चार बार जोर से हिलाता है. पिस्तौल खतरनाक तरीके से हवा में हिलती है. पिस्तौल भैरव के चेहरे के सामने से गुजरती है. भैरव का चेहरा पसीने से तर-बतर हो जाता है. भैरव नित्या के ऊपर रहकर ही पिस्तौल को चेहरे की ऊंचाई से नीचे की ओर ले जाता है. नित्या एक हाथ से भैरव का गला पकड़ लेता है. दूसरे पिस्तौल वाले हाथ से झटके देकर भैरव के हाथों से अपना हाथ छुडाने की कोशिश करता है. इससे भैरव को नित्या के ऊपर से उठना पड़ता है. नित्या जोर लगाकर, होठों को भींचकर अपने खाली हाथ से भैरव की गर्दन को दूर करने का यत्न करता है. भैरव अपना पूरा दम लगाकर पिस्तौल को नित्या के चेहरे की ऊँचाई तक लेकर आता है. पिस्तौल के चेहरे और उसकी कनपटी तक पहुँच जाती है.अब भैरव अपने पूरे दम से पिस्तौल का घोडा दबाने की कोशिश करता है. नित्या पूरे दम से पिस्तौल को अपने से दूर करने की कोशिश करता है. नित्या थोडा कामयाब हो जाता है पिस्तौल को अपने से दूर करने में और पिस्तौल दोनों के बीच हवा में झूलती है. दोनों में थोड़ी और हाथापाई होती है. भैरव नित्या के ऊपर लेट जाता है. पिस्तौल दोनों के शरीर के बीच फंस जाती है.

अचानक एक धमाका होता है.

कुछ देर तक मंच पर कोई हलचल नहीं होती है.

फिर धीरे से भैरव नित्या के ऊपर से उठकर बगल में लेट जाता है. भैरव का शरीर पसीना पसीना हो गया है.

पिस्तौल नीचे गिर जाती है.

नित्या की ओर से कोई हलचल नहीं होती है. उसका शरीर वैसे ही सोफे पर पड़ा रहता है.

धीरे धीरे भैरव उठता है, अपने पाँव के बल पर खड़ा होता है,भावशून्य अवस्था में यहाँ-वहाँ देखता है,थोड़ी चहल-कदमी करता है, फिर अपना सिर पकड़कर बैठ जाता है. अपनी आँखों को मसलता है, माथे को रगड़ता है. थोड़ी गहरी साँसें लेता है.

दरवाज़े पर हलचल होती है. भैरव सहमी निगाहों से पलटकर दरवाज़े की तरफ देखता है. वह उठकर दरवाज़े की तरफ जाना चाहता है. लेकिन अन्दर आते हुए व्यक्ति को देखकर वापिस नीचे बैठ जाता है.

रेखा का प्रवेश.

रेखा अन्दर का दृश्य देखकर हैरानी से देखती है. उसकी आँखों में खौफ भर आता है.

भैरव सर पकडे रेखा की ओर देखता है.

अचानक नित्या का शव लुढ़ककर जमीन पर औन्धे-मूंह फिसल जाता है.

शव की इस हरकत से दोनों चौंककर घबरा जाते हैं.

कुछ क्षणों की चुप्पी के पश्चात ...

रेखा : भैरव, क्या हुआ ?

भैरव : मुझे मारने के लिए आया था ये.

रेखा ग़मगीन आँखों से नित्या के शव को देखती है.

भैरव : तुम जानती हो न इसको ?

रेखा (भयभीत होकर) : हाँ.

भैरव : ये बोल रहा था कि तुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो.

रेखा (भय से) : आपसे शादी के बाद मैं इससे नहीं मिली हूँ.

भैरव (जोर से झल्लाकर) : झूठ बोल रही हो तुम ! तुमने ही इसे मेरा क़त्ल करने के लिए भेजा था.

रेखा (अत्यंत भयभीत होकर) : क्या ...

भैरव (जोर से, शव की ओर इशारा करके) : तुमने ही इसे एक बजे का समय दिया था मुझसे मिलने के लिए.

रेखा (भय से, मगर दृढ़ता पूर्वक) : मुझे नहीं मालूम आप क्या कह रहे हो.

भैरव की साँसें तेज़ चल रही हैं.

रेखा : हम दोनों प्रेमी थे, लेकिन शादी के पहले. मैं कई बार आपको बताना चाहती थी, लेकिन हिम्मत नहीं हुई. मैंने इसको बोल दिया था कि शादी के बाद मैं कभी इससे मिलना नहीं चाहती हूँ.

रेखा शव का चक्कर लगाकर नित्या के पास बैठ जाती है और उसको गंभीरता से देखती है.

भैरव की साँसें और तेज़ हो चुकी हैं. वह अपनी छाती पर हाथ रख देता है.

रेखा अपना मोबाइल निकालती है.

भैरव : किसको कॉल कर रही हो तुम ?

रेखा (भैरव की तरफ देखकर) : पुलीस को.

भैरव : पागल हो गई हो तुम ?

रेखा : पुलीस को तो बुलाना पड़ेगा ना ? हत्या हुई है घर में !

भैरव : तुमको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है क्या ? मेरे हाथों से गोली चली है. मैंने मारा है इसको !

रेखा : आपके हाथों से गोली चली तो क्या हुआ ? हमारे घर के अन्दर ये घुसा है. आपने जानबूझकर कोई खून नहीं किया है. अपनी जान को बचाने के लिए आपने इसको मारा है.

भैरव (अपनी छाती को अपने बाएं हाथ से जोर से पकड़कर, दर्द में):बात ये नहीं है !

रेखा उसकी पीड़ा देखकर मोबाइल बंद करके रख देती है.

रेखा : भैरव, क्या बात है ? आपको क्या तकलीफ हो रही है ? सीने में बहुत दर्द हो रहा है क्या ?

भैरव घबराहट में विचलित हो जाता है. उसको समझ में नहीं आता है कि खड़े रहना चाहिए या बैठना चाहिए.

रेखा : मैं आपकी दवाई लेकर आती हूँ.

रेखा अन्दर चले जाती है.

भैरव विचलित रूप से फडफडाता हुआ यहाँ-वहाँ घूमता है. जब उससे सहन नहीं होता है तो सोफे पर बैठ जाता है.

अचानक नित्या के शव से हलचल होती है. नित्या अपनी आँखें खोलता है. सिर उठाता है. भैरव भौंचक्का होकर उसको देखता है. भैरव के मूंह से चीख निकल जाती है. नित्या उठ खड़ा होता है. नित्या भैरव की गर्दन पकड़ लेता है. भैरव जोर से चिल्लाता है और गर्दन छुड़ाने की कोशिश करता है. भैरव नित्या की पकड़ से छूट जाता है. वह घबराकर जोर से चित्कारी मारते हुए काली माता की मूर्ती के सामने तक चला जाता है. अपने सीने को जोर से पकड़ कर, जोर से चीखता है,और चीखते-चीखते धम्म से काली माता की मूर्ती के सामने गिर पड़ता है.

थोड़ी ही देर में माहौल शांत हो जाता है. नित्या महज़ उसको देखते रहता है.

रेखा अन्दर से आती है.

रेखा नित्या को देखकर मुस्कुराती है.

नित्या अपनी नीचे गिरी हुई पिस्तौल उठाता है. वह रेखा को देखकर मुस्कुराता है. पिस्तौल को साफ़ करता है.

नित्या : इसमें कोई असली गोली नहीं थी. सिर्फ धमाका था. बुड्ढ़े को लगा कि उसने गोली चलाकर मेरा खून कर दिया है.

रेखा मुस्कुराते हुए नित्या के पास आ जाती है.

रेखा : मुझे मालूम है. अच्छा हो गया कि भैरव ने पुलीस को बुलाने नहीं दिया.

नित्या (भैरव को देखकर) : दूसरा हार्ट अटैक आ गया बुड्ढ़े को. अब बुड्ढा ख़तम हो गया.

रेखा : एक बार तहकीकात करके पक्का कर लेना चाहिए कि ये मर गया.

नित्या भैरव के शरीर की तरफ जाता है. उसको पलटता है. उसकी नब्ज़ देखता है.

भैरव धीरे से आँखें खोलता है.

उसकी खुली आँखों को देखकर नित्या बौखलाकर डर के मारे पीछे की ओर गिर जाता है. उसके हाथ से पिस्तौल छूटकर नीचे गिर जाती है.

भैरव धीरे धीरे उठ खड़ा होता है. फिर नित्या की ओर देखकर मुस्कुराता है.

भैरव पहले धीमी, फिर जोर से हंसी हँसता है.

भैरव (जोर से हँसते हुए) : बेटे, तेरे को क्या लगता है, कि मरने का ढोंग सिर्फ तू ही कर सकता है ?

भैरव जोर से अपनी छाती पर मुक्के मारता है.

भैरव (मुक्के मारते हुए) : देख कितना मज़बूत दिल है मेरा अभी भी. तेरे को बोला था ना कि मेरे को अब कुछ नहीं होने वाला है.

नित्या (बैठे बैठे) : ये सब ढोंग करने की क्या जरूरत थी ?

भैरव (दोनों की तरफ इशारा करके) : तुम दोनों का तो साक्षात पता चल गया ना ! (रेखा को देखकर) अब तो ये कोई बहाना नहीं कर सकती है.

नित्या उठकर खड़ा हो जाता है.

भैरव (हँसते हुए) : मरने के बाद क्या गर्दन पकड़ी है तूने मेरी. तेरे को लगा कि तेरे गर्दन पकड़ने से मैं मर ही जाऊंगा.

भैरव, नित्या और रेखा को बौखलाया हुआ देखकर, और जोर जोर से हंसने लगता है.

वो इतनी जोर जोर से हंसने लगता है कि उसको खांसी आ जाती है. वो खांसने लगता है और अपना सीना पकड़ लेता है. खांसते हुए और सीना पकडे हुए वो नीचे बैठ जाता है.

फिर थोड़ी देर में जब उसका खांसना बंद होता है, तो वो ऊपर मुंडी उठाकर नित्या की तरफ देखता है. फिर हंसने लगता है और उठ जाता है जैसे दोनों का मज़ाक उड़ा रहा हो.

भैरव : तुमको क्या लगा, कि बुड्ढा गया फिर से ? (फिर हँसता है).

भैरव हँसते हुए टहलने लगता है.

भैरव : मरने का नाटक करना कोई आसान काम नहीं है. बहुत कठिन है मरने की प्रक्रिया. तूने भी अपने घर में काफी रिहर्सल की होगी साँसें बंद रखके मरने की.

नित्या (अनमने से) : कोई रिहर्सल नहीं की है मैंने.

भैरव : तेरे को काम की जरूरत है तो मैं तेरे को काम दिला सकता था. अब भी दिला सकता हूँ.

नित्या : तू मेरे को काम दिलाएगा ?

भैरव : पहले तो तमीज से बात कर. 'तू' और 'बुड्ढ़े'से नहीं. मेरे घर में है तू, समझा ?

रेखा बुत बनकर दोनों के बीच तमाशा देख रही है.

भैरव (रेखा से) : और तुम तो मेरी दवाई लेने के लिए अन्दर गईं थीं. क्या हुआ, दवाई लाना भूल गई तुम ? चलो कोई बात नहीं, मेरी तबियत अचानक ही भगवान् की दया से ठीक हो गई है. अब कोई फरक नहीं पड़ता.

रेखा (नित्या से) : इसको (भैरव की तरफ इशारा करके) कैसे पता चला ? सब तेरी मूर्खता की वजह से. तूने ही ऐसा कुछ बक दिया होगा.

नित्या : तुमने क्या मेरे को एकदम मूर्ख समझ लिया है ? मैंने कुछ भी नहीं कहा. बुड्ढा बहुत चालाक और होशियार है. मुझे तो लगता है कि मेरे यहाँ आने से पहले ही इसको सब पता था.

रेखा (नित्या से) : ऐसा कैसे हो सकता है ?

नित्या (रेखा से) : हो सकता है इसने टीवी चैनल वालों को फ़ोन लगाकर पूछा हो.

रेखा (नित्या से) : वहाँ से कुछ पता नहीं चलेगा.

भैरव (रेखा से) : तुमने तो इसके रूमानी भ्रम-जाल को चकनाचूर कर दिया.

रेखा नित्या को घूरती रहती है.

भैरव (रेखा से) : इतनी आलोचना मत करो इसकी. तुम्हारे प्लान का इसने पूरी तरह से पालन किया है.

नित्या अभी भी स्तब्ध खड़ा भैरव को देख रहा है.

भैरव (नित्या से) : तेरे को तो मेरी बीवी ने बताया ही होगा कि रोज मैं दौड़ लगाने जाता हूँ और कसरत भी करता हूँ. तेरे को क्या लगा कि थोड़ी-सी हाथापाई से मेरे को हार्ट अटैक आ जाएगा ? ऐसा कभी सुना है कि थोड़ी सी झड़प से किसी को हार्ट अटैक आ जाए ?

नित्या : अगर इसमें असली गोली होती ...

भैरव (रेखा से) : तुमको तो इसपर नाज़ होना चाहिए. बहुत दिमाग है इसको और बात करने का बड़ा सलीका है इसका. ये कोई आम गुंडागर्दी करने वाला आदमी नहीं है.

रेखा भैरव को न देखकर नित्या को घूरते रहती है. भैरव की तरफ देखने की उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही है.

भैरव (रेखा से) : लेकिन तुम इतना जल्दी अपने गैलरी वाली जगह से वापिस कैसे आ गई ?

रेखा : गैलरी वाली जगह से ?

भैरव : शायद तुम बाहर ही इंतज़ार कर रहीं थीं कि गोली चले, इसका खेल ख़तम हो और मैं अन्दर आ जाऊं.

रेखा (नित्या से) : तू तो बहुत ही मूर्ख आदमी निकला.

भैरव (नित्या से) : क्या चालाकी से पिस्तौल मेरे हाथ में दी है तूने. जबरदस्त संघर्ष ... बिलकुल असली संघर्ष ! फिर पिस्तौल मेरे हाथ में ! ताकि गोली मेरे हाथ से चले. और मैं ये समझूं कि तू मेरे हाथ से मारा गया. फिर ये (रेखा की तरफ इशारा करके) पुलीस को फ़ोन करने का बहाना करके मुझे पूरी तरह से डरा दे कि मैंने खून किया है. लेकिन मुझे समझ नहीं रहा है - क्या ऐसा करके तुम दोनों मेरेको ब्लैकमेल करना चाहते थे ? या तुमको लगा कि इतनी हाथापाई, खून और पुलीस के नाम से मुझे हार्ट अटैक आ जाएगा और खेल वहीँ ख़त्म हो जाएगा ?

नित्या : पर कुछ हुआ तो नहीं ना ?

भैरव : अगर उतने से मुझे अटैक नहीं आता, तो अपने द्वारा खून किये गए इंसान को जीवित होता देख तो मुझे जरूर हार्ट अटैक आ जाता. (रेखा से) और तुम क्या करने जा रही थी ? अस्पताल को फ़ोन लगाकर एम्बुलेंस को बुलाती ? मुझे अस्पताल ले जाती ? थोड़ी और देर होने देती ताकि डॉक्टर मुझे मृत लाया हुआ घोषित करे ?

रेखा (अनमने से) : किसी को कुछ नहीं हुआ है.

भैरव (रेखा से) : पहले तुम इसको घर भेज देती. और फिर अस्पताल में फ़ोन लगाती. तुम तो वाकई बहुत दिमागवाली और होशियार औरत निकली. बिलकुल मेरी पत्नी बनने लायक.

रेखा (अनमने से) : कुछ भी नहीं बिगड़ा है.

भैरव (रेखा से) : तुमको वाकई पेंटिंग की गैलरी खोलना है, या गैलरी के लिए जगह ढूँढने के बहाने से उस वक़्त घर से दूर रहना था जब मेरी मौत हो रही हो ?

नित्या : मैंने कोई खून नहीं किया है. और न ही करने वाला था.

भैरव (रेखा से) : तीन-तीन दिन लगातार तुम गैलरी की जगह ढूँढने के बहाने से ठीक एक बजे घर से निकल जाती हो. और ठीक तुम्हारे जाने के बाद ये आदमी घर में आ जाता है और बोलता है कि तुम्हारे से अपॉइंटमेंट लिया है, और तुमने मुझे कभी बताया नहीं कि ये टीवी चैनल वाला आदमी आनेवाला है. तो शक तो किसी को भी हो ही जाएगा कि दाल में कुछ काला है.

नित्या : लेकिन मुझे अब भी लगता है कि बुड्ढ़े को हमारे बारे में पता चल गया था पहले से ही.

भैरव : थारगढ़ से तुम्हारा इतना क्या लगाव है ? कौन रहता है तुम्हारा वहाँ थारगढ़ में जो तुम इतना मेरे से पूछ रहे थे थारगढ़ के बारे में ?

नित्या : बहुत हो गया. अब मैं और नहीं रह सकता इस घर में. (रेखा से) मैं जा रहा हूँ.

नित्या जाने के लिए दरवाज़े की ओर बढ़ता है.

भैरव : बहुत बढ़िया बेटा. मुझे तो मालूम भी नहीं कि तू मेरे घर में अभी तक क्या कर रहा है. इससे पहले कि मैं पुलीस को बुलाकर तेरे पर खून करने की कोशिश करने का इलज़ाम लगाऊँ, तू मेरे घर से भाग जा और फिर ज़िन्दगी में मेरे को कभी दिखाई मत देना.

रेखा (नित्या से) : चले जाओ तुम.

नित्या दरवाज़े तक जाकर वापिस आ जाता है.

नित्या (रेखा से) : मैं तुमको इस आदमी के साथ अभी अकेला नहीं छोड़ सकता.

भैरव (नित्या से) : मेरी बीवी की चिंता तू मत कर.

नित्या (रेखा से) : मैं अभी भी इसका काम तमाम कर सकता हूँ.

भैरव (रेखा से, हँसते हुए) : इसकी बुद्धि वाकई भ्रष्ट हो गई है. इसको बताओ कि अब क्यों नहीं हो सकता है यह सब.

रेखा (नित्या से) : अगर हम लोग अब कुछ भी करेंगे, तो मेरे पास बोलने के कोई नहीं है कि इस वक़्त मैं पेंटिंग की गैलरी की जगह पर थी. मैं जाती ही तो वहाँ पर इसीलिए थी कि गैलरी वाला आदमी मेरी वहाँ पर उपस्थिति की गवाही दे सके जब यहाँ घर में कुछ हो रहा हो.

भैरव (नित्या से) : समझ गया तेरेको ?

नित्या (रेखा से) : क्या करूं, तुम बताओ.

भैरव (नित्या से) : अगर तेरी जगह मैं होता, तो सरपट यहाँ से भाग जाता.

नित्या (रेखा से) : मेरे साथ चले चलो यहाँ से.

रेखा : नहीं.

नित्या : ये बुड्ढा तुम्हारा जीना हराम कर देगा.

रेखा : मैं ठीक हूँ. मेरा कोई कुछ नहीं कर सकता. तुम घर चले जाओ. मैं कल तुमसे बात करूंगी.

नित्या एक पल के लिए रूककर भैरव को देखता है, फिर घर से बाहर चला जाता है.

नित्या के जाने के बाद कुछ समय तक रेखा भैरव को निहारती रहती है.

रेखा : अब आप क्या करोगे ? मेरे लिए मारक यंत्र का प्रयोग करोगे ? मैंने तो पहले ही इस बदमाश को बोल दिया था कि तू मेरेको भूल जा. लेकिन वो कभी नहीं माना.

भैरव : बड़ा रोचक प्रश्न है. यह इतनी कोई गंभीर परिस्थिति नहीं है.

रेखा (भैरव को बर्गलाने के लिए) : मैंने तो उसको बोला था कि भैरव के पास कोई ऐसी अंदरूनी शक्ति है जिससे उसको सब पता चल जाता है.

भैरव : प्रश्न यह है कि क्या हमको सब कुछ भूल कर सामान्य तरीके से वापिस रहना चाहिए ? या यहीं पर झगडा करके एक दूसरे की जान ले लेनी चाहिए ? या फिर तुम मुझसे अपनी इस संगीन गलती और भूल की माफ़ी मांगकर क्षमा-याचना करोगी ?

रेखा : अगर आपको पहले से पता चल गया था, तो आपने इस पूरे प्लान को हम लोगों को अंजाम क्यों देने दिया ?

भैरव : मैं कब बोल रहा हूँ कि मुझे पहले से ही कुछ पता था ? किसी भी आदमी का शक धीरे धीरे गहराता है. मुझे पहले से पता होता तो मैं अपनी जान को जबरदस्ती जोखिम में क्यों डालता ? अगर उस पिस्तौल में धमाके के बदले असली गोली होती तो ?

रेखा : फिर भी मुझे लगता है कि आपको कुछ भनक जरूर थी. मैं जान सकती हूँ कि कहाँ से आपको यह भनक लगी ?

भैरव : तुम सोच सकती हो कितना बड़ा खतरा मोल लिया है मैंने अगर मुझे पहले से ही भनक होती तो ?

रेखा : मुझे लगता है कि आपने अपनी जान को इसीलिए जबरदस्ती जोखिम में डाला कि मुझसे आपको फुकट में छुटकारा मिल जाए, बिना कुछ लिए दिए.

भैरव : हो सकता है. अगर मुझे पहले से ही पता होता,और मैं भी तुमसे छुटकारा पाना चाहता, तो मेरे लिए इससे बढ़िया और कोई अवसर नहीं होता.

रेखा : मतलब आपने मौका का भरपूर लाभ उठाया. मेरी गलतियों का फायदा उठाया.

भैरव : तुम चिंता मत करो. तुमको मुझसे छुटकारा चाहिये था ना ? वो तुमको मिल जाएगा. लेकिन मेरी जायदाद में से एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी. यही मेरा सौभाग्य है, और तुम्हारा दुर्भाग्य. जो अपने बल पे मैंने कमाया है, जितनी जमीन-जायदाद हासिल की है, सब मेरे पास रहेगा.

रेखा : तुम्हारी अर्धाग्नी होने के नाते कुछ तो मुझे मिलेगा.

भैरव : तुम्हारे आगे की जिंदगी के निर्वाह का व्यय कैसे जुटाना है, इसकी चिंता तुमको खुद करनी है. मैं इस चिंता से मुक्त होकर हल्का हो जाना चाहता हूँ. मुझे तुम्हारे लिए किसी भी चीज़ का बंदोबस्त करने का दायित्व नहीं है. तुमको इस शादी से उसी अवस्था में निकल जाना है,जिस अवस्था में तुम आई थी.

रेखा (क्रोध से) : मुझे ये शर्तें मंज़ूर नहीं हैं.

भैरव : क्रोधित होने से काम नहीं चलेगा. तुमको ये शर्तें माननी ही पड़ेंगी. तुम्हारा पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं है.

रेखा : आपने किसी के पास ऐसा कोई पत्र या दस्तावेज तो नहीं छोड़ा है कि आकस्मिक मौत होने पर किसी को मेरे ऊपर शक हो ?

भैरव : कैसी बातें कर रही हो ? हम दोनों के लिए ही यह कितनी शर्मिंदगी भरी बात होगी.

रेखा चैन की सांस लेती है.

दरवाजे पर हलचल होती है.

दोनों दरवाजे की तरफ देखते हैं.

भैरव : कौन आ गया ? वो इतना बेवकूफ तो नहीं होगा कि यहाँ वापिस आ जाए.

केदार का प्रवेश.

भैरव (आश्चर्य से) : केदार !

केदार भी आश्चर्य से भैरव को देखता है.

केदार : मैं गलत समय पर तो नहीं आ गया ? आपके किसी जरूरी काम में तो मैं दखल नहीं दे रहा हूँ ?

भैरव : कैसी बातें करते हो ? आओ, अन्दर आ जाओ.

केदार : मैं ज्यादा समय नहीं लूँगा आपका. मुझे मालूम है कि इस वक़्त आप थोडा विश्राम करके संध्या की तैय्यारियाँ करते हो.

भैरव : दरअसल मुझे बड़ी ख़ुशी है कि तुम इस वक़्त आ गए. इससे ज्यादा सही समय नहीं हो सकता है तुम्हारे आने का.

केदार : क्यों ?

भैरव : जो कुछ हुआ और हो रहा है, उसके गवाह बन सकते हो तुम.

केदार (जिज्ञासावश) : क्या हुआ और क्या हो रहा है ?

भैरव (रखा से) : मेरा मित्र केदार जानना चाहता है कि यहाँ ऐसा क्या घटित हुआ कि उसको गवाह बनाने की जरूरत पड गई ?

रेखा कोई जवाब नहीं देती है.

भैरव (रेखा से) : तुम उसको बताना चाहोगी या मैं बताऊँ ?

रेखा केदार की तरफ देखती है, मानों पूछना चाहती हो कि उसे क्या कहना चाहिए.

भैरव (केदार से) : आज रेखा ने मेरा खून करवाने की कोशिश की.

केदार सूनी आँखों से रेखा की तरफ देखता है.

केदार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पाकर भैरव को आश्चर्य होता है.

भैरव (केदार से, थोडा विस्मित होकर) : केदार, तुम सुन रहे हो ना नहीं ? शायद तुमको ठीक ढंग से सुनाई नहीं आया मैंने क्या कहा. मैंने कहा कि ...

केदार (भैरव की बात बीच में ही काटते हुए) : सुन लिया मैंने.

भैरव विस्मय से केदार को निहारता है.

केदार (रेखा से) : उस बेवकूफ ने काम बिगाड़ दिया ना ? क्या गलती कर दी उसने ?

रेखा (केदार से) : शायद इसको (भैरव की ओर इशारा करके) पहले से ही मालूम था. ये ठीक ढंग से बता नहीं रहा है.

केदार (रेखा से) : पर टीवी चैनल वालों को तो मैंने बता दिया था कि अगर भैरव का फ़ोन आए तो बता देना कि प्रारंभिक पूछताछ के लिए किसी आदमी को मैंने उसके घर भेजा है.

रेखा (केदार से) : फिर मुझे नहीं मालूम इसको कैसे पता चला.

केदार (रेखा से) : इसमें ऐसी कोई तांत्रिकी शक्ति नहीं है कि भीतर से ही इसको पता चल जाए. मुझे मालूम है.

भैरव विस्मय से दोनों के बीच का संवाद सुन रहा है. दोनों को आपस में इस तरह बात करते देख वो घोर आश्चर्य में है. फिर अपने मूंह पर और अपने सिर पर हाथ फेरकर सिर हिलाते हुए हँसता है.

भैरव को हँसता देख, दोनों केदार और रेखा उसको घृणा से देखते हैं.

भैरव (विस्मय से हँसते हुए, ताली बजाते हुए) : क्या बात है रेखा, तुमने तो कमाल ही कर दिया !

रेखा (केदार से) : इसको समझ गया है हम दोनों क्या बात कर रहे हैं.

केदार (रेखा से) : तुमने पुलीस को फ़ोन किया है ?

रेखा (केदार से) : नहीं.

केदार (गहरी सांस लेकर) : चलो कोई बात नहीं. कुछ भी नुकसान नहीं हुआ है.

रेखा (केदार से) : अब क्या करना चाहिए ?

केदार (भैरव से) : भैरव, मैं ये उम्मीद कर रहा था कि बेवकूफ नित्या काम कर दे. लेकिन अपना काम खुद ही करना चाहिए. बेवकूफों पर निर्भर रहकर कोई मतलब नहीं है.

केदार अपनी जेब से दास्ताने निकालकर हाथों में पहनता है.

केदार : हार्ट अटैक से मरने-मारने में दिक्कत यह है कि यह मरने-मारने का भरोसेमंद तरीका नहीं है.

भैरव : तुमको सब पता है नित्या और रेखा की चाल, है ना ?

केदार : बहुत ही अच्छा तरीका होता था वह. कोई पिस्तौल नहीं, गोली नहीं. किसी को कोई शक नहीं. हार्ट अटैक से कितने लोग मर रहे हैं.

भैरव : नित्या के कंधे पर बन्दूक रखकर दरअसल तुम दोनों गोली चला रहे थे.

केदार नीचे यहाँ वहाँ देखता है.

भैरव (रेखा से) : तुम किसके साथ हो ? मेरे साथ, केदार के साथ या नित्या के साथ ? या कोई और चौथा आदमी है जिसके लिए तुम हम सबको बेवकूफ बना रही हो ?

रेखा (केदार से) : यहीं कहीं पर है. मैंने बहुत ध्यान दिया था कि जाते वक़्त वो बेवकूफ पिस्तौल यहाँ से न लेकर जा सके.

केदार (नीचे झुकते हुए) : ये रही. मिल गई.

अपने दस्ताने पहने हाथों से केदार पिस्तौल को उठाता है.

केदार (भैरव से) : इस पिस्तौल पर नित्या की उँगलियों के निशान हैं. अगर वो बेवकूफ काम करने में सफल हो जाता तो बहुत अच्छा होता. लेकिन हम दोनों पूरी तरह से उसपर भरोसा नहीं कर सकते थे.

भैरव (निडरता से) : तो अब तुम मुझे मारोगे इसी पिस्तौल से ताकि दूसरों को लगे कि उस बेवकूफ नित्या ने मुझे मारा है.

केदार : बिलकुल सही.

केदार पिस्तौल को अपने दाहिने हाथ में कसकर पकड़ लेता है.

भैरव : लेकिन नित्या के पास तो सिर्फ धमाका करने वाली गोलियां थीं. वो असली में मेरा खून नहीं करना चाहता था.

केदार : नहीं, वो सिर्फ तुमको डराकर मारना चाहता था.

भैरव : और अब तुम वाकई में मेरा खून करोगे ?

केदार : मेरे पास और कोई चारा नहीं है.

भैरव : बेवकूफ मत बनो केदार. इस एक औरत के लिए खूनी मत बनो.

केदार : रोज हम लोग कितने लोगों को धोखा देते हैं तांत्रिक शक्ति के नाम पर.

भैरव : उसका खून से क्या वास्ता ?

केदार : वो सब लोग हमपर निर्भर रहते हैं. उनकी भावनाओं और उनके अरमानों का हम लोग रोज़ खून कर रहे हैं.

भैरव : हर कातिल को कोई न कोई तर्क चाहिए होता है. ये तर्क उसका बहाना होता है जिसकी आड़ में अपने खून को अंजाम देता है और उसको अपना कारण समझता है. तुमने भी अपनी तर्कसंगति ढूंढ ली है.

केदार : सब न्यायोचित है. तुमने भी इतनी बड़ी उम्र में इक्कीस बरस की लड़की के साथ शादी की. उसके अरमानों का गला घोंट कर उसका खून किया.

भैरव : सब उसकी मर्ज़ी के साथ हुआ था. उसकी और उसकी माँ की जिंदगी संवर गई. आज देख कैसे राज कर रही है वो. वरना कर्ज़ेवालों ने अब तक दोनों को मार कर उनकी लाश नाले में फेंक दी होती.

केदार : अगर वो इससे खुश होती, तो आज हम इस मुकाम पर खड़े नहीं होते और तुम इस पिस्तौल का मूंह नहीं देख रहे होते.

भैरव : तुमको लगता है कि आज वो तुम्हारे से खुश है. कुछ समय पहले तक वो नित्या के साथ खुश थी. फिर मेरे साथ खुश थी. तुमको पूरा भरोसा है कि वो तुम्हारे से ये काम कराकर किसी और के साथ न चले जाए ?

केदार : मुझे पूरा भरोसा है उसपर.

भैरव : तुम उसके सामने मेरा खून कर रहे हो. तुम्हारा यह राज़ हमेशा उसके पास रहेगा कि तुम एक खूनी आदमी हो. आदमी-औरत के रिश्ते बिगड़ते देर नहीं लगती है. तुम्हारे बाद जो भी इसकी ज़िन्दगी में आएगा, वो और ये मिलकर तुम्हारा या तो जीना हराम कर देंगे, या फिर तुमको मेरे खून के इलज़ाम में जेल भिजवा देंगे.

रेखा (केदार से) : बेकार की बकवास कर रहा है ये.

केदार : भैरव, किसी भी औरत को ज्यादा समय तक अपने पास रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. और उसके लिए उसकी तरफ ध्यान देने की भी जरूरत रहती है. तुम सिर्फ अपना उद्देश्य पूरा करने में रह गए. अगर तुम अपनी धोखेबाजी की दौलत जुटाने में इतना मशगूल नहीं होते, तो आज तुम इस स्थिति में खड़े नहीं होते जहां तुम्हारे अपने ही इतने करीब के कई लोग तुम्हारी जान लेने पर तुले हुए हैं.

भैरव : अपनी बेशर्मी और गद्दारी को मेरी गलती बताने की कोशिश कर रहे तुम.

केदार रेखा को कार की चाबी देता है.

केदार : रेखा, तुम बाहर जाकर मेरी कार में बैठो. मैं तुम्हारे सामने इसे नहीं मारना चाहता हूँ.

रेखा कार की चाबी केदार से लेकर बाहर चली जाती है.

भैरव : केदार, तांत्रिकों को वैसे ही लोग खून, लाशों और भूत-प्रेतों से लिपटा हुआ देखते हैं. अपने हाथ किसी बेक़सूर के खून से मत रंगों. जैसा तुमने कहा, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है.

केदार : खून का इलज़ाम अभी भी उस बेवकूफ नित्या पर ही आएगा. वैसे भी वो गुंडागर्दी करता है. और खून के वक़्त वो इस घर में भी मौजूद था.

भैरव : पर अपने आप से पूछो. खून तो तुम ही करोगे, नित्या नहीं.

केदार : भैरव, मेरा विश्वास करो - मैं नहीं चाहता था कि स्थिति यहाँ तक आ जाये. मुझे मालूम है कि तुमको मेरी इस बात पर यकीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है.

भैरव : लेकिन थोडा सोचो केदार, तुम्हारा ये प्लान काम नहीं करेगा. नित्या खुद पुलीस के पास चला जाएगा.

केदार : नित्या पुलीस के पास नहीं, पुलीस नित्या के पास जाएगी. उसके उँगलियों के निशान इस पिस्तौल पर हैं. और उसके पास कोई गवाह भी नहीं है कि खून के वक़्त वो कहाँ था. हम दोनों को मालूम है कि वो यहाँ था.

भैरव : अगर पुलीस उसको ले गई, तो वो पुलीस को रेखा के बारे में बता देगा. वो बता देगा कैसे रेखा ने उसके साथ मिलकर प्लान बनाया था. फिर पुलीस रेखा को भी गिरफ्तार कर लेगी.

केदार : वो पुलीस को क्या बतायेगा ? कि धमाके की आवाज से डराकर वो तुम्हारा खून करने के लिए तीन दिनों तक तुम्हारे घर में भटकता रहा ? और पहले ही पुलीस उसके पीछे पड़ चुकी है गुंडागर्दी के मामले में. उस गुंडे का कौन विश्वास करेगा ?

भैरव : पुलीस जरूर ये पता लगा लेगी कि शादी से पहले उसकी रेखा से अच्छी जान-पहचान थी.

केदार : उल्टा उससे तो ये साबित हो जाएगा कि जलन में और बदला लेने के लिए उसने तुम्हारा खून कर दिया और अब रेखा को भी फंसा रहा है. ये तो और अच्छी बात होगी.

भैरव : लेकिन रेखा भी तो यहीं थी.

केदार : रेखा अपनी पेंटिंग वाली जगह पर काफी समय थी. और अब वो और मैं दोनों पेंटिंग वाली जगह पर साथ में थे, जब प्रेम में धोखा खाया हुआ वह बेवकूफ यहाँ तुम्हारा खून कर रहा था.

भैरव : नित्या के कहने पर पुलीस रेखा के फ़ोन रिकॉर्ड भी देखेगी.

केदार : फ़ोन रिकॉर्ड से साबित हो जाएगा कि वो रेखा को डरा-धमका रहा था. जब रेखा को पता चला कि वो इस वक़्त वो यहाँ पर पहुँच गया है, तो रेखा खुद यहाँ तुमको सचेत करने आ गई थी. इससे रेखा के यहाँ मौजूदगी का कारण भी साफ़ हो जाएगा, अगर वो बेवकूफ बोलता है कि रेखा भी उसके साथ थी. लेकिन रेखा के आने में देरी हो चुकी होगी. नित्या तुम्हारा खून कर चुका होगा.

भैरव : केदार, आखिरी बार अच्छे से सोच लो. काली माता की मूर्ती सामने रखी है.

केदार : इसी मूर्ती के सामने तुमने कितनों को उल्लू बनाया है, मैंने देखा है.

भैरव : अगर तुमको मालूम ही था कि मुझे नित्या मारने वाला है, तो टीवी चैनल पर तुमने मेरा कार्यक्रम क्यों पक्का कराया ?

केदार : सीधी सी बात है. ताकि मैं नित्या को टीवी चैनल वाला आदमी बनाकर यहाँ भेज सकूं.

भैरव : आज तक तुमने कभी किसी का खून करने के लिए पिस्तौल उठाई है अपने हाथ में ?

केदार : परिस्थितियाँ मजबूर कर देती हैं इंसान को पहली बार कोई भी कदम उठाने पर.

भैरव : तो जिंदगी में पहली बार तुमने पिस्तौल पकड़ी है अपने हाथ में. इसका घोडा दबाने में तुम्हारे हाथ नहीं काँप रहे ?

केदार : हाथ उसके कांपते हैं जिसके इरादे मजबूत नहीं होते हैं और जिसके दिल में अंजामों का खौफ बैठा होता है.

भैरव : किसी की जान ले लेना किसी भी आदमी का आखिरी पड़ाव होना चाहिए, जहां से उसे और कोई रास्ता नहीं नज़र आता हो.

केदार : इस वक़्त रेखा ही मेरे जीवन का रास्ता है.

पिस्तौल से गोली चलती है. एक धमाका होता है.

भैरव अपना पेट पकड़कर लडखडाते हुए काली माता की मूर्ती के तरफ आता है मानों माता से क्षमा-याचना करना चाहता हो. फिर मूर्ती के पैरों पर पेट के बल गिर जाता है और शांत हो जाता है.

केदार उसको गिरता हुआ देखता है. फिर तसल्ली करने के लिए भैरव के शरीर को पेट के बल से उल्टा करके देखता है. भैरव के पेट से लाल खून निकलकर उसके कपड़ों पर लाल दाग बना चुका है. भैरव के शरीर से कोई हलचल भी नहीं है.

तसल्ली होने पर केदार अपना मोबाइल निकालता है और रेखा को फ़ोन लगाता है.

केदार (मोबाइल पर) : रेखा, आ जाओ अन्दर. काम हो गया. मैंने अच्छे से देख लिया है. इस बार सब बराबर है.

केदार मोबाइल बंद करता है और काली माता की मूर्ती की तरफ देखता है मानों कुछ पूछना चाहता हो. फिर मूर्ती से अपना ध्यान हटाकर कमरे में यहाँ-वहाँ देखता है कि कोई सुराग तो नहीं छूट गया. वह पिस्तौल को दीवान के नीचे सरका देता है.

रेखा का प्रवेश.

रेखा बुत बनकर भैरव के शरीर को देखती है. शरीर से कोई हलचल नहीं है, आँखें बंद हैं.

केदार : मैं जाता हूँ. मुझे जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचना चाहिए. तुम थोड़ी देर के बाद पुलीस को फ़ोन करके बुला लेना. अभी उनको नित्या के बारे में मत बताना. थोड़ी तहकीकात उनको खुद करने देना.

रेखा कोई भी जवाब देने में असमर्थ दिखती है.

केदार : एक-दो दिनों में पुलीस उस तक पहुँच ही जाएगी. अगर तुम चाहो तो पुलीस वालों के सामने मुझे भी बुला लेना. हिम्मत रहेगी तुमको और मेरा साथ भी. तब तुम डरोगी नहीं.

रेखा : लेकिन पुलीस वाले जानना नहीं चाहेंगे कि मैं तुमको क्यों बुला रही हूँ ?

केदार : मैं भैरव का सबसे अच्छा मित्र था इस नाते से. मुझे इतल्ला करने के नाते से और मृत्यु के बाद के आगे के प्रबंध करने के लिए.

रेखा : हाँ, सब इंतज़ाम करने में एक पुरुष की जरूरत तो होगी ही.

केदार : तीन दिन पहले ही मैंने भैरव का टीवी चैनल पर कार्यक्रम पक्का करवाया था. इसीलिए मेरे पर कोई शक नहीं करेगा. अगर मुझे गलत काम करना होता, तो मैं इतनी मेहनत करके कार्यक्रम क्यों पक्का करवाता ?

केदार एक बार फिर कमरे को देखता है, फिर दरवाजे से बाहर निकल जाता है.

रेखा थोडा चहलकदमी करती है. अपने बालों को थोडा बिगाडती है. चेहरे पर जोरों से हाथ रगडती है मानों मेक-अप साफ़ कर रही हो. घडी की ओर देखती है.

जाने उसको क्या सूझता है, वो भैरव की तरफ आती है. भैरव को देखते हुए नीचे उसके पास बैठती है. थोड़ी देर भैरव को निहारती है.

अचानक भैरव के पाँव से हरकत होती है. रेखा उसके हरकत वाले पाँव को देखती है. पाँव को दबाना चाहती है. जैसे ही वह पाँव पर हाथ रखती है, भैरव की आँखें खुल जाती हैं.

भैरव की आँखें खुलते देख रेखा के शरीर में सिरहन दौड़ जाती है. वह पीछे की तरफ गिर पड़ती है. उसके मूंह से चीख निकल जाती है.

भैरव धीरे धीरे उठकर जमीन पर बैठ जाता है.

रेखा चीखते हुए बैठे बैठे ही भैरव से दूर सरकती जाती है.

रेखा डरकर चीखते हुए उठकर दरवाजे की तरफ भागने का प्रयास का करती है. भैरव उसको पकड़ लेता है और दीवान पर धक्का देकर लिटा देता है. रेखा दीवान पर गिर जाती है.

भैरव जल्दी से सामने का दरवाजा बंद करके उसके ऊपर और नीचे की कुंडियाँ लगा देता है.

भैरव लाल आँखों से रेखा को देखता है.

भैरव : तुमको मालूम है कितने लोग मुझसे मारक यंत्र का उपयोग कर किसी को मारने के लिए पूजा करवाते हैं ? और कितने ही लोग मरे हुए को जिंदा करने के लिए पूजा करवाने के लिए आते हैं ?

रेखा के मूंह से रोने जैसी आवाज निकलती है. वह घबराकर दीवान पर पीछे की ओर सरकती है.

भैरव दीवान के करीब आता है.

भैरव : कितने लोगों ने कोशिश की है मौत से विजय पाने की. कितने तांत्रिकों ने कोशिश की है और आज भी कर रहे हैं. लेकिन कौन सफल हुआ है आज तक ? कोई नहीं.

रेखा एकदम घबराई हुई आँखों से भैरव को देखती है.

भैरव : एक बार जो आदमी दूसरी ओर चला गया, तो वापिस आना संभव नहीं है. फिर भी लोग उनको वापिस लाने के लिए पूजा करवाते हैं. मैं भी इन लोगों के लिए पूजा करवाने के लिए मन्त्रों की तलाश में जाने कहाँ कहाँ भटका हूँ. मौत से वापिस लाने का मन्त्र ! वापिस जिंदा करने का मन्त्र !

रेखा रोती हुई अपना सिर नीचे कर अपने दोनों घुटनों के बीच रखना चाहती है, लेकिन उससे ऐसा नहीं होता है.

भैरव : कितनी पत्नियां अपने पति की मौत हो जाने के बाद भी उनके वापिस आने का इंतज़ार करती रहती हैं. ऐसी पत्नियों को ही असली हक़ है करवा चौथ मनाने का.

रेखा : म..म...म...

आवाज रेखा के गले में अटककर रह जाती है.

भैरव : जिन लोगों को ईश्वर की शक्ति से आशीर्वाद प्राप्त रहता है, वो लोग ऑपरेशन टेबल पर मरकर भी वापिस जिंदा हो जाते हैं.

रेखा हकलाती है, लेकिन उसकी आवाज दब जाती है.

भैरव :आज का दिन मौत से वापसी का दिन है.

रेखा : लेकिन केदार ने तुमको गोली से मार दिया था. मैंने अपनी आँखों से तुमको मरा हुआ देखा है.

भैरव : मैं तुमको मरा हुआ दिखता हूँ ?

रेखा : न..न..नहीं. (कपड़ों पर लगे खून की तरफ इशारा करके) लेकिन ये खून ...

भैरव : ये तो माता का प्रसाद है. उसका सिन्दूर है. गाढ़ा सिन्दूर, जो मैं माता के सामने रखता हूँ, और जिससे मैं सबको टीका लगाता हूँ.

भैरव माता की मूर्ती के सामने रखे हुए माथे पर सिन्दूर का टीका लगाने की सामग्री की तरफ इशारा करता है.

रेखा : ये खून नहीं है ?

भैरव : नहीं, सिन्दूर है. जब मैं यहाँ गिरा था, तो मैंने लगा लिया था अपने पेट पर.

रेखा को यह सुनकर वापिस होश आता है. उसमें धैर्य बढ़ जाता है.

रेखा : तो तुम वाकई में मरे नहीं हो ?

भैरव : आज तो मैं जिंदा हो. कल अगर तुमने और कोई षड्यंत्र किया तो पता नहीं.

रेखा : गोली नहीं लगी तुमको ?

भैरव : गोली पिस्तौल से चली होती तो लगती. सिर्फ धमाका हुआ.

रेखा : क्या ?!

भैरव : पिस्तौल नित्या की थी. तुमको क्या उम्मीद थी, कि उसमें से असली गोली निकलेगी ?

रेखा (थोडा रोष से) : ये तो केदार को देखना चाहिए था.

भैरव : अब ये बताओ कि तुम्हारी बेवफाई की क्या सजा होनी चाहिए ?

रेखा : अगर तुमको पहले से ही ये सब मालूम था, ...

भैरव : मुझे पहले ही मालूम था कि मेरा शुभचिंतक और दोस्त केदार मेरे पर गोली चलाएगा ?!

रेखा (अपना सर पकड़कर) : कुछ नहीं समझ में आ रहा है मेरेको.

भैरव : ऐसा दोस्त, जो मेरी बीवी को किसी और के साथ जाने की केवल इजाज़त ही नहीं देता है, बल्कि प्रोत्साहित भी करता है.

रेखा कुछ नहीं कह पाती है.

भैरव : मुझे तो ऐसा भी लगता है कि शायद तुम उसका भी इस्तेमाल कर रही हो.

रेखा : लगता रहे तुम्हारे को.

रेखा गुस्से और चिढ से दीवान पर से उठ जाती है.

भैरव : तुमको क्या लगता है, कि खेल ख़तम हो गया ?

रेखा : तो और क्या ? आज यहाँ कुछ भी नहीं हुआ. न किसी का खून हुआ, न ही चोरी.

भैरव : दो बार मेरा खून करने की कोशिश की है दो अलग अलग लोगों ने. और उन दोनों को उकसाने वाला कौन ? तुम !

रेखा : तुम कुछ नहीं साबित कर सकते. क्योंकि यहाँ कुछ हुआ ही नहीं. अगर तुमने मेरे ऊपर इलज़ाम लगाने की कोशिश की, तो एक तरफ तुम्हारी जुबान रहेगी,और एक तरफ मेरी.

भैरव : ह्म्म्म ... शायद सही कह रही हो तुम.

रेखा : अब तुम क्या करने वाले हो ?

भैरव : अब मैं नहीं, तुम करोगी. तुम यहाँ से प्रस्थान करने की तैय्यारी करोगी.

रेखा गुस्से से भैरव की तरफ देखती है.

भैरव : दो मिनट बैठ जाओ तो मैं कुछ बताता हूँ.

रेखा अनमने से दीवान पर बैठ जाती है.

भैरव भी बैठ जाता है.

भैरव : तुम एक खतरनाक औरत हो. तुम्हारे बोलने पर वो लोग भी कातिल बनकर खून करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं, जिन्होंने आज तक कभी पिस्तौल न देखी है न अपने हाथों में ली है. इस घर में तुम्हारा एक पल भी और रहना मेरी जान का जोखिम है. इसीलिए तुम अभी इसी वक़्त यहाँ से चली जाओ.

रेखा : मैं अपना हिस्सा लिए बगैर नहीं जाऊंगी. चाहे तुम मुझे मार डालो.

भैरव : अगर तुम यहाँ थोड़ी देर भी और रुकी, तो मैं नित्या को तुम्हारे और केदार के बारे में बता दूंगा. नित्या को तो ये भी मालूम नहीं है कि केदार कौन है. जब उसको ये पता चलेगा कि कैसा खेल खेला है तुमने उसके साथ, तो मेरे को तो वो कुछ नहीं करेगा, लेकिन तुम दोनों को नहीं छोड़ेगा. और तुमको तो मालूम ही है कि उसका जीवन गुंडागर्दी करके ही चलता है.

रेखा : नित्या को कभी तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं आएगा कि उसका इस्तेमाल करके किसी का खून कराने की कोशिश की है मैंने.

भैरव : नित्या से बात करने के बाद मुझे समझ में आ गया है कि वो कोई साधारण गुंडा नहीं है. वो दिमाग से एकदम तेज़ और शातिर आदमी है जिसको बात करने का न केवल पूरा सलीका आता है, बल्कि सोचने-समझने की जबरदस्त कला भी है उसके पास.

रेखा : मेरे सामने तुम्हारा कोई तर्क नहीं चलेगा उसके साथ.

भैरव :मैं पुलीस के पास भी जा सकता हूँ और तुम्हारे और केदार के ऊपर खून के प्रयास का इलज़ाम लगा सकता हूँ.

रेखा : उसके लिए भी तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है.

भैरव (गहरी सांस छोड़कर) : ठीक है, अगर तुम नहीं मानती हो, तो मेरे पास एक ही उपाय है.

रेखा का आत्म-विश्वास अब वापिस आया हुआ प्रतीत होता है. उसके हाव-भाव से लगता है कि उसका डर गायब हो गया है.

भैरव अपना रुमाल निकालता है और रुमालवाले हाथ से दीवान के नीचे से पिस्तौल निकालता है.

भैरव : इस पिस्तौल पर अब भी नित्या के उँगलियों के निशान हैं.

रेखा विस्मय और आश्चर्य से पिस्तौल को देखती है.

रेखा (उपहास से) : और इसमें सिर्फ धमाके वाली गोलियां हैं.

भैरव : अगर तुम अभी इसी वक़्त नहीं गयीं, तो मैं किसी ऐसे असली गुंडे के हाथ में यह पिस्तौल दे दूंगा, जो तुम्हारा खून इसी पिस्तौल से करेगा और उँगलियों के निशान नित्या के ही बने रहेंगे. उसके पास असली गोलियां होगी. मेरे तांत्रिकी के पेशे में मेरा पाला ऐसे कई लोगों के साथ पड़ चुका है और मैंने उनके कई काम किये हैं जिनके लिए वो मुझे पूजते हैं.

रेखा : तुम ऐसा नहीं कर सकते.

भैरव : थोडा सोचो. अगर तुम और केदार मिलकर मेरे खून के इलज़ाम में उसको फंसा रहे थे, तो तुम्हारे खून के इलज़ाम में मैं उसको क्यों नहीं फंसा सकता हूँ ? इलज़ाम उसी पर लगेगा, सिर्फ फर्क इतना होगा कि शिकार कोई और होगा. शिकार मेरे बदले तुम होगी.

रेखा : कोई यकीन नहीं करेगा. पत्नी के खून में नब्बे प्रतिशत पति का ही हाथ होता है, ये बात पुलिसवालों को अच्छे से मालूम है. वो उस गुंडे को ढूंढ निकालेंगे जो मेरा खून करेगा और तुम फंस जाओगे.

भैरव : गौर से सोचो. वो तुमसे कहीं मिलता है ... यहाँ दुबारा उसके आने की हिम्मत तो होगी नहीं. जहां भी वो तुमसे मिलता है, तुम दोनों में बहस होती है. वो तुमको मुझसे तलाक लेने के लिए कहता है. तुम नहीं मानती हो. दोनों में झड़प हो जाती है. रोष और क्रोध में, और जलन के कारण, वो तुम्हारा खून कर देता है इसी पिस्तौल से जिसपर उसके उँगलियों के निशान हैं.

रेखा : नित्या के कुछ साथी ये बोल सकते हैं कि वो उनके साथ था उस वक़्त जब मेरा खून हुआ.

भैरव : गुंडागर्दी करने वाले सब साथ में होते हैं, अपने में बंधे रहते हैं.

रेखा : लेकिन केदार को तो सब पता है कि इस पिस्तौल पर पहले से ही नित्या के उँगलियों के निशान थे. वो बोल सकता है.

भैरव : वो कुछ भी नहीं बोल सकता है. वो कुछ भी बोलेगा, तो खुद ही फंस जाएगा. अभी तक तो उसको ये भी पता नहीं है कि मैं जिंदा हूँ. टीवी चैनल पर उसका नाम लेकर उसके जैसे धोखेबाज़ तांत्रिक को निष्कासित करने की मांग करूंगा जो तांत्रिकी के धंधे को बदनाम कर रहे हैं.

भैरव उठ जाता है.

भैरव : अब तुम्हारा समय आ गया है.

रेखा भारी मन से उठती है, बहुत धीरे से दरवाजे तक जाती है. पीछे मुड़कर भैरव को देखती है, मानों क्षमा याचना करना चाहती हो, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं होती है. बेमन से, वह दरवाजा खोलकर चुपचाप निकल जाती है.

रेखा के जाते ही भैरव दरवाजा बंद कर देता है. पिस्तौल को ध्यान से देखता है. उसको रुमाल में लपेटे हुए काली माता की मूर्ती की तरफ जाता है.


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हिंदी समय में डॉ. भारत खुशालानी की रचनाएँ